बसवराज बोम्मई ने कर्नाटक की कमान संभाल ली है. राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई. इसके साथ ही वे राज्य के 23वें मुख्यमंत्री बन गए. बसवराज इससे पहले येदियुरप्पा सरकार में गृह और कानून मंत्रालय देख रहे थे. बसवराज के पिता एसआर बोम्मई भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे हैं. ‘नए मुख्यमंत्री बोम्मई साफ छवि के माने जाते हैं. साथ ही येदियुरप्पा के करीबी भी हैं’.
इस वक्त बीजेपी येदियुरप्पा को नाराज करने का रिस्क नहीं उठा सकती, यही कारण है कि येदियुरप्पा के कहे गए नाम पर ‘मुहर’ लगानी पड़ी. इसे येदियुरप्पा का ‘मास्टरस्ट्रोक’ कह सकते हैं क्योंकि बोम्मई येदियुरप्पा का मोहरा हैं और लिंगायत समुदाय से ही आते हैं. इसी के साथ बीएस येदियुरप्पा की सक्रिय राजनीति का ‘सफर’ भी खत्म हो गया है. लेकिन इस बार भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर दूरदृष्टि की नीति अपनाई. पिछली बार नेतृत्व परिवर्तन का सबक लेते हुए इस बार आलाकमान पूरी तरह सतर्क था.
बता दें कि कर्नाटक की सियासत में ठीक एक दशक पहले साल 2011 में जो हुआ था वह अब दोहराया नहीं गया. उस समय भी राज्य में विधानसभा चुनाव होने के लिए दो साल बाकी थे, जो 2013 में हुए थे. अब कर्नाटक में 2 साल बाद 2023 में चुनाव होंगे. बात को आगे बढ़ाते हैं. ‘कर्नाटक में एक दशक के सियासी घटनाक्रम भाजपा के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा से जुड़े हुए हैं. दोनों बार मुख्यमंत्री की कुर्सी से येदियुरप्पा को हटाया गया.
लेकिन इस बार हाईकमान ने कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को हटाने में रणनीति बनानी पड़ी’. मतलब साफ है कर्नाटक की राजनीति में मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने से लेकर नए नेता के चयन की जिम्मेदारी पूरी तरह बीएस येदियुरप्पा को ही दी गई . सही मायने में आलाकमान ने इस बार साल 2011 वाली गलती नहीं की. बता दें कि उस साल मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए येदियुरप्पा पर ‘गंभीर आरोप’ लगे थे. उसके बाद आनन-फानन में भाजपा हाईकमान ने येदयुरप्पा को हटाने का ‘फरमान’ सुना दिया था. भाजपा की ओर से सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया गया था जो वह दूसरे समुदाय के थे.
आलाकमान के इस फैसले के बाद राज्य का ‘लिंगायत समुदाय’ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ हो गया था. साल 2013 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार हुई थी और पार्टी मात्र 40 सीटों पर ही सिमट कर रह गई . मंगलवार को हुई लिंगायत समुदाय के मठाधीशों के साथ हुई बैठक में येदियुरप्पा ने अपनी तरफ से इस नाम को उन सबके बीच रखा . बंगलुरु में हुई विधायक दल की बैठक पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने ही बसवराज का मुख्यमंत्री पद के लिए नाम सुझाया. लिंगायत समुदाय के होने की वजह से उनके नाम पर सभी मठाधीश राजी हो गए.
विधायक दल की बैठक में पर्यवेक्षक के रूप में पहुंचे केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी और धर्मेंद्र प्रधान ने स्वीकृति दे दी. 28 जनवरी 1960 को जन्मे बसवराज सोमप्पा बोम्मई कर्नाटक के गृह, कानून, संसदीय मामलों के मंत्री रहे हैं. उनके पिता एसआर बोम्मई भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट बसवराज ने जनता दल के साथ राजनीति की शुरुआत की थी. वे धारवाड़ से दो बार 1998 और 2004 में कर्नाटक विधान परिषद के लिए चुने गए.
इसके बाद वे जनता दल छोड़कर 2008 में भाजपा में शामिल हो गए और उसी साल शिगगांव से विधायक चुने गए. येदयुरप्पा के दो दिन पहलेे इस्तीफा देने से जो लिंगायत समुदाय में आक्रोश फैल गया था उसे भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने आखिरकार शांत कर दिया है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार