बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतर विवाह मामले को लेकर एक अहम और ऐतिहासिक फैसला सुनाया. अब आपको बताते हैं क्या है वह महत्वपूर्ण फैसला, जिसकी गूंज उत्तर प्रदेश में योगी सरकार तक सुनाई दी. अलग-अलग धर्मों के युवक-युवतियों के शादी के मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश के स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी से 30 दिन पहले जरूरी तौर पर नोटिस देने के नियम अनिवार्य नहीं है. इसको विकल्प बनाना चाहिए.
इस तरह का नोटिस प्राइवेसी यानी निजता का हनन है. हाईकोर्ट ने कहा कि यह कपल की इच्छा पर निर्भर होना चाहिए कि वह नोटिस देना चाहते हैं या नहीं. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह फैसला उस पिटीशन पर सुनाया, जिसमें कहा गया था कि दूसरे धर्म के लड़के से शादी की इच्छा रखने वाली एक बालिग लड़की को हिरासत में रखा गया है.
इस जोड़े ने अदालत से कहा था कि शादी से 30 दिन पहले नोटिस देने से उनकी निजता का उल्लंघन हो रहा है. न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने कहा कि इस तरह के प्रकाशन को अनिवार्य बनाना स्वतंत्रता और गोपनीयता के मौलिक अधिकारों पर हमला करना है, जिसमें राज्य और गैर-राज्य के लोगों के हस्तक्षेप के बिना शादी का चयन करने की स्वतंत्रता शामिल है. हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद योगी सरकार के बनाए गए लव जिहाद कानून पर असर होगा .