रविवार को समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की एक तस्वीर आई जो उनके बेटे की कोरोना वैक्सीन के खिलाफ ली गई प्रतिज्ञा के उलट थी. मुलायम सिंह यादव कोरोना के खिलाफ वैक्सीन की एक डोज ले चुके थो स्वाभाविक तौर पर बीजेपी की प्रतिक्रिया आनी थी.
दिल्ली से लेकर लखनऊ तक बीजेपी के नेता गदगद थे. इस बीच सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जनाक्रोश को देखते हुए आख़िरकार सरकार ने कोरोना के टीके के राजनीतिकरण की जगह ये घोषणा करी कि वो टीके लगवाएगी.
हम भाजपा के टीके के ख़िलाफ़ थे पर ‘भारत सरकार’ के टीके का स्वागत करते हुए हम भी टीका लगवाएंगे व टीके की कमी से जो लोग लगवा नहीं सके थे उनसे भी लगवाने की अपील करते हैं. उन्होंने कहा कि वो कभी राजनीतिक चश्मे से किसी का विरोध नहीं करते हैं. तथ्यों के आधार पर जनभावना के आधार पर अपनी बात रखते हैं.
नेता जी हर बार अपने पुत्र अखिलेश को गलत साबित करते है, बेटा जहां वैज्ञानिकों की बनाई वैक्सीन का मजाक उड़ाता रहा, तो वहीं नेताजी ने वैक्सीन भी लगवाई, तस्वीर भी खिंचवाई. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि अच्छा है कि जो लोगो टीके का विरोध कर रहे थे उनके संरक्षक ने टीका लगवाकर जनता को शानदार संदेश दिया है. अब समाजवादी पार्टी के बाकी लोगों को भी सोचने की आवश्यकता है.
दरअसल जनवरी के महीने में जब कोविशील्ड और कोवैक्सीन के जरिए लोगों को कोरोना वायरस के खतरे से बचाने की मुहिम शुरू की गई तो सबसे ज्यादा मुखर विरोध अखिलेश यादव की तरफ से हुई. उन्होंने टीकों को बीजेपी का टीका बता दिया. इसके साथ ही उनके एक विधायक ने कहा कि टीका लगाने से नपुंसकता का खतरा है.
इस तरह के बयानों का असर टीकाकरण अभियान पर पड़ा. लेकिन अब करीब 6 महीने के बाद जिस तरह से टीकाकरण की वजह से किसी तरह की नकारात्मक जानकारी सामने नहीं आई तो एसपी को लगने लगा कि विपक्ष इस विषय पर और हमलावर होगा. रही सही कसर तब पूरी हो गई जब मुलायम सिंह यादव ने खुद टीकाकरण करा लिया. अब ऐसी सूरत में अखिलेश यादव के पास कहने के लिए कुछ खास नहीं था.