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इनसाइड स्टोरी: पांच महीने बाद भी पीएम मोदी के करीबी एके शर्मा योगी मंत्रिमंडल में नहीं हो सके ‘अर्जेस्ट’

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यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दर्जनों बार अटकलें लगती रही कि अब होगा तब होगा, लेकिन अब फिर संकेत मिल रहे हैं कि फिलहाल नहीं होगा. आखिरकार यूपी में चल क्या रहा है? प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में एक बार फिर ‘पीएम मोदी मैन अरविंद कुमार शर्मा सुर्खियों में हैै’. योगी सरकार में पिछले पांच महीनों से पूरी सियासत एके शर्मा के इर्द-गिर्द ही केंद्रीय रही है.

जिस प्रकार से ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को समय से पहले रिटायर (वीआरएस) कर उत्तर प्रदेश भेजा और फिर विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) बनाकर योगी सरकार में बड़ी जिम्मेदारी उपमुख्यमंत्री (डिप्टी सीएम) बनाने को लेकर खूब चर्चा रही’. लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन्हें अपनी टीम में नहीं लेना चाहते थे . दूसरी ओर पीएम मोदी एके शर्मा को यूपी में योगी कैबिनेट में शामिल कराना चाहते थे इसी को लेकर योगी और भाजपा हाईकमान के बीच ‘तनातनी’ की खबरें सामने आई थी. अरविंद शर्मा को लेकर केंद्रीय नेतृत्व और योगी आदित्यनाथ के बीच गतिरोध भी बना रहा.

कुछ दिनों पहले जब योगी आदित्यनाथ दो दिनों के दौरे पर दिल्ली आए तो यहां पीएम मोदी, गृहमत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद लगने लगा था कि एमएलसी शर्मा को योगी सरकार में शामिल कराने की ‘मुहर’ लग चुकी है लेकिन आखिरकार ऐसा नहीं हो सका. शनिवार को जब एके शर्मा को उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष पद पर मनोनीत किया गया तब एक बार फिर चर्चा गर्म हो गई है.

‘सबसे बड़ा सवाल यह है जब मोदी मैन शर्मा को भाजपा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाना था तो उन्हें एमएलसी क्यों बनाया गया? उपाध्यक्ष तो बिना एमएलसी के ही कोई भी बन जाता है . इस पद के लिए जरूरी नहीं है विधान सभा या विधान परिषद का कोई सदस्य हो. एमएलसी बनाए जाने के बाद से एके शर्मा बड़ी जिम्मेदारी संभालने के लिए अपने आपको तैयार कर रहे थे. क्योंकि उन्हें दिल्ली से यूपी भेजा गया, इतना ही नहीं वह पीएम मोदी के करीबी माने जाते हैं.

इसलिए सबके मन में था कि शर्मा को महज विधान परिषद के सदस्य के लिए नहीं बल्कि किसी बड़े सियासी मकसद के लिए लाया गया है. पांच महीने बीत जाने के बावजूद अरविंद शर्मा को न तो मंत्रिपरिषद में जगह दी गई और न ही सरकार में अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई. यहां हम आपको बता दें कि ‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कैबिनेट विस्तार के पक्ष में नहीं थे.

एके शर्मा को मंत्री बनाने के बजाय संगठन में जगह देना योगी की जीत है और बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की हार है’. माना जा रहा है कि संगठन में एंट्री के बाद अरविंद शर्मा के इस कार्यकाल में मंत्री बनने के ‘अरमानों पर पानी फिर गया है’.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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