केंद्र सरकार के कृषि कानून बनाने के बाद किसानों को लग रहा था कि हम केंद्र सरकार की गिरफ्त में आ गए हैं. इसी को लेकर पंजाब-हरियाणा समेत अन्य राज्यों के किसानों ने दिल्ली में डेरा जमा कर इस कानून के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया.
केंद्र सरकार से आठ दौर की वार्ता के बाद निराश हुए किसानों को आखिरी उम्मीद देश की सर्वोच्च अदालत से लग रही थी कि, हमें न्याय मिलेगा.
लेकिन कुछ फैसलों में ताकत तो बहुत होती है लेकिन जब उनका आकलन किया जाए तब बात वहीं आकर अटक जाती है. ऐसा ही मंगलवार को कृषि कानून को खत्म करने के लिए धरने पर बैठे किसानों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ.
जब देश की शीर्ष अदालत बहुत ही सख्त लहजे में केंद्र सरकार के बनाए गए तीनों कृषि कानूनों को रोक लगा रही थी उस समय दिल्ली में धरने पर बैठे हजारों किसानों के चेहरे पर कुछ उम्मीद दिखाई पड़ने लगी.
लेकिन ‘शाम को किसानों ने साफ कर दिया कि उनका आंदोलन जारी रहेगा और उन्हें सुप्रीम कोर्ट की कमेटी मंजूर नहीं है’. इन अन्नदाताओं को लगने लगा कि हमारे साथ सर्वोच्च अदालत ने भी पूरा न्याय नहीं किया. ‘कोर्ट ने भले ही केंद्र सरकार के बनाए गए कृषि कानून पर रोक लगा दी हो लेकिन एक कमेटी का गठन कर गेंद उसी के पाले में डाल दी है’.
किसान इस कमेटी के विरोध में उतर आए हैं. जैसे की उम्मीद की जा रही थी अदालत के इस फैसले के बाद किसानों का राजधानी से आंदोलन खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. किसानों ने कहा, कमेटी में सुप्रीम कोर्ट ने जिन सदस्यों को शामिल किया है वह सभी केंद्र सरकार के लोग हैं, इसलिए हम उन से न्याय की आस नहीं करते हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार