रिहाई के बाद कश्मीरी नेताओं की एकता मोदी सरकार पर कितना दबाव बना पाएगी!

1975 में रिलीज हुई जीपी सिप्पी निर्देशित फिल्म शोले का एक संवाद बहुत प्रसिद्ध हुआ था. फिल्म में यह संवाद अमजद खान ने संजीव कुमार के लिए बोला था.’ठाकुर मैंने तो तेरे हाथ ही काट दिए तू क्या मुझसे लड़ेगा’.

अब बात को आगे बढ़ाते हैं. घाटी में एक बार फिर से कश्मीरी नेताओं के द्वारा जहर घोलने का काम किया जा रहा है.’नजरबंदी के बाद एकजुट हुए फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन ने कश्मीर की आजादी को लेकर केंद्र सरकार को चैलेंज दिया है.

‘घाटी में बैठकर भले ही यह नेता केंद्र की भाजपा सरकार को ललकार रहे हों लेकिन अब उससे कुछ होने वाला नहीं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन कश्मीरी नेताओं की सियासी ताकत 14 महीने पहले ही छीन ली थी’.

बता दें कि पिछले साल 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर अलगाववादी नेताओं के मुंह पर करारा तमाचा लगाया था.

अब यह अलगाववादी, पाकिस्तानी विचारधारा के नेता आजाद हुए हैं उसके बाद एक बार फिर से धीरे-धीरे शांत हो रही घाटी को उग्र किया जा रहा है.

दूसरी ओर इन नेताओं की कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध करने की सियासी मजबूरी भी कही जा सकती है. लगभग 14 महीने बाद नजरबंदी के बाद रिहा हुए फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन ने घाटी से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार को चुनौती दे रहे हैं.

एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर रैली करने की तैयारी कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर कश्मीरी नेताओं ने मोदी से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर ली है. ‘सियासी मोर्चे पर एकजुट हुए कश्मीरी नेता भाजपा सरकार के लिए थोड़े समय के लिए चिंता हो सकती है.

क्योंकि केंद्र सरकार अगले साल कश्मीर में चुनाव कराने की तरफ देख रही है, ऐसे में बीजेपी अपने राजनीतिक एजेंडे में ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिससे जनता के बीच उसकी साख पर सवाल उठने लगे’, क्योंकि बीजेपी को पहले ही स्थानीय पार्टियों की आलोचना का सामना करना पड़ा है’.

‘गुपकार समझौते’ के अंतर्गत फारूक अब्दुल्ला ने सभी दलों को किया एकत्रित

आइए आपको बताते हैं ‘गुपकार समझौता’ क्या है. पिछले वर्ष चार अगस्त 2019 को फारूक अब्दुल्ला के गुपकार स्थित आवास पर एक सर्वदलीय बैठक हुई थी. यहां एक प्रस्ताव जारी किया गया था, जिसे गुपकार समझौता कहा गया.

इसके अनुसार पार्टियों ने निर्णय किया कि वे जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को बनाए रखने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करेंगे. इस समझौते में जम्मू-कश्मीर के छह बड़े राजनीतिक दल शामिल हैं. इनमें नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस समेत तीन और दल हैं.

इसके एक दिन बाद मोदी सरकार के 5 अगस्त 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाई गई तो उससे पहले ही जम्मू-कश्मीर में हलचल बढ़ने लगी थी. तब घाटी के नेताओं ने एक साझा बयान जारी किया था, जिसमें अनुच्छेद 35ए और 370 को खत्म करना या बदलना असंवैधानिक कहा गया था.

साथ ही कहा गया था कि राज्य का बंटवारा कश्मीर और लद्दाख के लोगों के खिलाफ ज्यादती है. इसे ही बाद में गुपकार समझौता कहा गया.मोदी सरकार ने पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद सरकार ने एहतियातन तौर पर कई नेताओं को नजरबंद किया था.

इनमें फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन भी शामिल थे, जिन्हें अब रिहा कर दिया गया है. इसी के बाद घाटी में फिर से राजनीतिक हलचल बढ़ने लगी है. बता दें कि नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला मोदी सरकार के खिलाफ घाटी में एक नया महागठबंधन बनाना चाहते हैं.

पीपुल्स अलायंस के नाम से फारूक घाटी के सभी पार्टियों के नेताओं को एकजुट करने में लगे हुए हैं.महबूबा मुफ्ती की रिहाई के बाद से ही कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियों में अचानक तेजी आई है.

राज्य में होने वाले चुनाव में कुछ महीनों का ही समय बचा है. सही मायने में अपनी खोई हुई राजनीति को चमकाने के लिए इन कश्मीर नेताओं ने शांत घाटी को एक बार फिर से अशांत कर दिया है.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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