इनसाइड स्टोरी: रामदेव के बड़बोलेपन के बाद केंद्र से बिगड़ते रिश्तों के बीच कांग्रेस ने भी निकाली ‘भड़ास’

मान-सम्मान, रसूख और पावर के साथ अपने आप को स्थापित करने में वर्षों लग जाते हैं. फिर भी अधिकांश लोग अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हैं. जो सफल होते हैं वही ‘सिकंदर’ कहलाते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपनी धन-दौलत के साथ ‘सत्ता’ में पकड़ हो जाती है तब उनको ‘गुरूर’ आ जाता है. फिर वह अनाप-शनाप बयान देना शुरू कर देते हैं . अभी कुछ समय पहले तक सब कुछ ठीक चल रहा था, देश-विदेशों में बड़ा सम्मान था, इसके साथ भाजपा सरकार के ‘लाडले’ भी बन गए.

देशवासियों ने इन्हें योग के प्रति लोगों में अलख (जागरूकता) जगाने के लिए ‘योगगुरु’ का दर्जा भी दे दिया. जी हां हम बात कर रहे हैं पतंजलि के मुखिया योगगुरु बाबा रामदेव की. पिछले कुछ दिनों से रामदेव के सितारे ‘गर्दिश’ में हैं. इसका बड़ा कारण यह है कि उनके विवादित बयानों ने ही उन पर ‘सवाल’ खड़े कर दिए हैं. योग गुरु से अब भाजपा के कई केंद्रीय मंत्री भी नाराज हैं. केंद्र सरकार से बिगड़ते जा रहे हैं रिश्तों की भनक जब कांग्रेस को लगी तब पार्टी के नेताओं ने बाबा रामदेव पर अपनी पुरानी ‘भड़ास’ निकाली. रामदेव के बड़बोले बयानों की वजह से कांग्रेस के साथ भाजपा नेताओं से भी अब ‘मनमुटाव’ बढ़ते जा रहे हैं.

बता दें कि करीब एक दशक से कांग्रेस और रामदेव के बीच ’36 का आंकड़ा’ चला आ रहा है. बता दें कि ‘कोरोना की पहली और दूसरी लहर में रामदेव का व्यापार भी खूब तेजी के साथ दौड़ा’. कोविड-19 संकटकाल में योग गुरु देशवासियों को चैनलों के माध्यम से योगाभ्यास के साथ इस महामारी से बचने के उपाय भी बताते रहे. जिससे देश में उनकी प्रतिष्ठा और बढ़ गई. ‘कोरोना काल में बहुत अधिक सम्मान पाकर रामदेव समझ बैठे कि इस महामारी के वही जनक है और जो वह बताएंगे वही सही हैै’. पिछले दिनों जब रामदेव ने कोरोना के इलाज को लेकर ‘एलोपैथी डॉक्टरों’ पर सवाल उठाए तब उनका यह बयान उल्टा पड़ गया.

इस बयान के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय और आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) और एमबीबीएस डॉक्टरों ने कड़ा एतराज जताते हुए पतंजलि मुखिया की निंदा की. आईएमए प्रमुख ने तो बाकायदा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी कहा. स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी पतंजलि आयुर्वेदिक कंपनी के प्रमुख रामदेव को एलोपैथी पर उठाए गए सवालों को वापस लेने के लिए बहुत ही ‘कड़ा’ संदेश देते हुए खत लिखा. उसके दूसरे दिन ही योग गुरु ने हालांकि माफी मांग ली.

डॉक्टरों के आक्रोश के बाद मोदी सरकार भी बाबा रामदेव से नाराज हैं. पिछले वर्ष भी कोरोना की योगगुरु ने अपनी कंपनी पतंजलि फार्मेसी की दवा ‘कोरोनिल’ को लेकर दावा किया था कि यह महामारी से लड़ने में कारगर होगी. उसके बाद आयुष मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ भाजपा की उत्तराखंड की तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भी नाराजगी जताई थी. बाद में उन्हें कोरोनिल के दावे पर सफाई भी देनी पड़ी थी.

कांग्रेस सरकारों, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ ने कोरोनिल दवा पर बैन भी लगा दिया था. हालांकि बाद में कांग्रेस राज्यों में इसे बेचने की अनुमति दे दी थी. रामदेव ने रविवार को भले ही एलोपैथिक मामले में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को अपना बयान लिखित रूप से वापस ले लिया. लेकिन सोमवार को योगगुरु ने एक बार फिर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और फार्मा कंपनियों से 25 सवाल पूछे.

इस बर्ताव के बाद केंद्र सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय अब रामदेव को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है. सोमवार शाम को रामदेव के इस बयान के बाद एक चैनल में डिबेट के दौरान आईएमए पदाधिकारियों ने उनकी बोलती बंद कर दी.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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