उत्तराखंड राज्य अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. कई लोगों ने उत्तराखंड की वादियों को स्वर्ग का दर्जा दिया है. लेकिन प्राकृतिक आपदा हर बार इस राज्य को अशांत कर जाती है. आज संडे का दिन चमोली में चटक धूप निकली थी.
जैसे ही दिन के 10 बजे वैसे ही शांत रहने वाला यह राज्य एक बार फिर देशभर में सुर्खियों में आ गया. साढ़े 7 वर्ष पहले केदारनाथ में आई भयंकर त्रासदी से अभी देवभूमि पूरी तरह संभल भी नहीं पाया था कि आज एक बार फिर लोगों के जख्मों को कुरेद गया.
चमोली में फटे ग्लेशियर के बाद खौफनाक मंजर और तबाही का रौद्र रूप रास्ते में जो भी चीज मिली सभी को बहा ले गया, चमोली और आसपास के क्षेत्रों में तबाही का मंजर दिखने लगा. धौलीगंगा से निकले सैलाब ने एक बार फिर उत्तराखंड की तेजी के साथ बढ़ते विकास कार्यों को विराम दे दिया.
लेकिन यह किसकी लापरवाही है, क्यों केदारनाथ आपदा से सबक नहीं लिया गया। आज चमोली की त्रासदी के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि ग्लेशियरों को लेकर कोई अध्ययन क्यों नहीं किया गया। देशवासियों को जब इस तबाही का समाचार मिला सभी स्तब्ध रह गए. ग्लेशियर फटने का वीडियो तेजी के साथ सोशल मीडिया में सेंड होने लगा.
उत्तराखंड की नदियों में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई. धौली गंगा नदी में अचानक जलस्तर बढ़ने से ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट में काम कर रहे 150 से ज्यादा लोग बह गए. हालांकि शाम तक एनडीआरएफ टीम, आईटीबीपी के जवानों ने टनल में फंसे 16 लोगों को बचा लिया. मौत से जंग जीतकर वापस आए लोग इस दौरान काफी खुश नजर आए, जैसे ही लोगों को टनल से बाहर निकाला गया उनके चेहरे पर मुस्कान दिखााई दी.
अभी टनल में कई लोग फंसे हुए हैं, जिनको बचाने के लिए सेना, एनडीआरएफ और आईटीबीपी के जवान लगे हुए हैं. ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह तबाह हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बात की. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बचाव और राहत कार्य का जायजा लिया.
यहां हम आपको बता दें कि वर्ष 2013 में 16 और 17 जून की रात को उत्तराखंड के लोगों ने भयानक जल प्रलय को देखा था जिसका दर्द आज भी कई परिवारों के चेहरे पर साफ तौर पर नजर आता हैै. इस प्राकृतिक आपदा ने दुनियाभर में मानव जाति को झकझोर दिया था। आज ऋषिगंगा-तपोवन में हुई तबाही ने केदारनाथ आपदा की याद दिला दी। 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा ने केदारघाटी से लेकर ऋषिकेश तक भयानक तबाही मचाई थी। इस त्रासदी में चार हजार लोगों की मौत हुई थी.
वहीं बड़ी संख्या में लोगों को बेघर होना पड़ा था. नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें, 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल या तो बह गए थे या फिर क्षतिग्रस्त हो गए थे। केदारनाथ धाम पूरी तरह बर्बाद हो गया था और वहां सिर्फ बाबा केदारनाथ का मंदिर ही बच पाया था। आपदा के बाद केदारनाथ मंदिर और आसपास के इलाकों की मरम्मत के लिए कई महीनों तक मंदिर को बंद रखा गया था.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर हिमालय के ग्लेशियरों में क्या चल रहा है और तमाम कोशिशों के बावजूद हम कहां पिछड़ रहे हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा समय में हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पिछली सदी के आखिरी 25 साल के मुकाबले दोगुनी हो चुकी है। यानी ग्लेशियरों से बर्फ की परत लगातार पिघलती जा रही है। तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों के निचले हिस्से को नुकसान हो रहा है। ऐसे में पानी की कमी के साथ ही हादसे भी बढ़ेंगे।
बड़ा सवाल यह है कि क्या चमोली की घटना को जलवायु परिवर्तन के तौर पर देखा जा सकता है ? आज चमोली में हुई इस त्रासदी के बाद अब हमें ग्लेशियर पर गहन अध्ययन करते हुए आगे बढ़ना होगा.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
केदारनाथ त्रासदी के बाद देवभूमि अभी पूरी तरह संभला भी नहीं था कि एक और जख्म कुरेद गया
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