विशेष स्टोरी: फोन टैपिंग को स्वीकार कर राजस्थान सरकार अपने ही जाल में फंसी, भाजपा फिर हिलाने लगी ‘गहलोत की कुर्सी’

वर्ष 1968 में आत्माराम निर्देशित और धर्मेंद्र, संजीव कुमार, आशा पारेख अभिनय से सजी एक फिल्म आई थी जिसका नाम था ‘शिकार’. ये फिल्म सस्पेंस से भरी हुई थी. फिल्म का एक गाना बहुत ही चर्चित हुआ था जिसके बोल हैं, ‘पर्दे में रहने दो पर्दा न उठाओ, पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा’. इसी गाने की तर्ज पर ही अब वह ‘सियासी राज’ खुल चुका है.

एक बार फिर जब ‘राजनीति कलंकित’ हुई तब नेताओं की ओर से ‘नैतिकता और उसूलों’ की दुहाई शुरू हो गई है. बात को आगे बढ़ाते हुए आज चर्चा करेंगे राजस्थान की सियासत की. आइए देखते हैं सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक है या फिर सत्ता पक्ष और विपक्ष में घमासान मचा हुआ है. अरे ! यहां तो इस बार विपक्ष यानी भाजपा सत्ता पक्ष की ‘गर्दन’ तक पहुंच गया है. बात को आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि इस बार जिस मामले में गहलोत सरकार और भाजपा आमने-सामने हैं वह पिछले वर्ष जुलाई में राजस्थान की कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए मचे सियासी घमासान से जुड़ा है.

पिछले वर्ष जैसे-तैसे करके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो गए थे. अब एक बार फिर उसी से जुड़ा मामला यानी ‘पार्ट-2’ बन कर राजस्थान कांग्रेस सरकार की गले की फांस बन गया है. अंतर यह है कि पिछले वर्ष गहलोत अपनी सरकार बचाते फिर रहे थे लेकिन इस बार वह खुद ही ‘कटघरे’ में आ गए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरा मामला क्या है. इसके लिए आपको पिछले वर्ष जुलाई महीने में लिए चलते हैं. पुरानी बातों को भूल कर गहलोत अपनी सरकार को मजबूती के साथ चलाते जा रहे थे लेकिन पिछले दिनों बजट सत्र के दौरान विधान सभा में एक बार फिर ‘विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़ा फोन टैपिंग’ का मामला सामने प्रकट हो गया, ‘विधानसभा में गहलोत सरकार मंत्रियों और विधायकों की फोन टैपिंग कराने को लेकर स्वीकार कर चुकी है’.

जबकि मुख्यमंत्री गहलोत इस बात से इनकार करते रहे हैं कि फोन टेप कराने में उनकी सरकार की कोई भूमिका नहीं है. अब विपक्ष को एक अहम मुद्दा मिल गया है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मुख्यमंत्री गहलोत से इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है. सही मायने में मुख्यमंत्री अपने ही बनाए गए जाल में फंस चुके हैं. बता दें कि जुलाई 2020 में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमे के 19 विधायकों ने गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत की थी. इनका आरोप था कि गहलोत कुछ विधायकों के फोन टेप करवा रही है.

वहीं गहलोत खेमे की तरफ से आरोप लगाए गए कि सचिन पायलट और उनके समर्थक बीजेपी के साथ मिल कर राजस्थान सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं. आपसी खींचतान के बीच पायलट समर्थक विधायकों ने हरियाणा के मानेसर में एक होटल में डेरा जमा लिया था. दूसरी ओर भाजपा के राजस्थान सरकार को गिराने के लिए आक्रामक होने पर गहलोत ने भी अपने विधायकों को एक होटल में ‘शिफ्ट’ करा दिया था.

फोन टैपिंग पर मंगलवार को विधानसभा में भाजपा विधायकों ने जमकर हंगामा किया. बता दें कि भाजपा के हंगामे के कारण स्पीकर को अब तक चार बार सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा.हंगामे और नारेबाजी के बीच भाजपा विधायक मदन दिलावर को सात दिन के लिए विधानसभा से निलंबित कर दिया गया. भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि गहलोत सरकार राजस्थान के लोगों की जासूसी कर रही है.

वहीं गहलोत सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भाजपा के बयान पर कहा कि सरकार विधायकों या सांसदों के फोन टेप नहीं करती है. खाचरियावास ने कहा कि भाजपा के नेता इसलिए बौखलाए हुए हैं क्योंकि उनके केंद्रीय मंत्री का ऑडियो टेप सामने आया था. हालांकि अभी तक फोन टैपिंग के मामले में अशोक गहलोत का बयान नहीं आया है.

राजस्थान सरकार ने 15 जुलाई, 2020 को यह ऑडियो टेप जारी किए थे
मालूम हो कि 15 जुलाई 2020 को गहलोत गुट की तरफ से कुछ ऑडियो टेप जारी किए गए. इन ऑडियो में गहलोत खेमे की तरफ से दावा किया गया था कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा और तत्कालीन मंत्री विश्वेंद्र सिंह की बातचीत है. उस बातचीत में सरकार गिराने और पैसों के लेनदेन की बातें थीं. सीएम अशोक गहलोत ने कई बार कहा कि सरकार गिराने के षड्यंत्र करने में हुए करोड़ों के लनेदेन के सबूत हैं, जिसके बाद ‘गहलोत ने कहा था अगर ये आरोप झूठे हों तो राजनीति छोड़ दूंगा’.

विधायकों की खरीद-फरोख्त को लेकर ऑडियो क्लिप वायरल होने के बाद राज्य सरकार पर फोन टैपिंग को लेकर सवाल उठे थे. इसके बाद ‘केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राजस्थान के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. नोटिस में कहा गया था कि मंत्रालय को शिकायत मिली है कि संजय जैन की फोन टैपिंग नियमों के खिलाफ हुई है. यह भी पूछा था कि फोन टैपिंग किन नियमों के तहत की गई’.

राजस्थान सरकार ने संजय जैन को इस ऑडियो मामले में दलाल माना और उसको गिरफ्तार कर लिया था. ऑडियो टेप आने के बाद बीजेपी के केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने आरोपों को निराधार बताया था. हालांकि जिन नेताओं के ऑडियो टेप आए थे, उनके वॉयस टेस्ट नहीं हुए थे. विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़े मामले की जांच राज्य सरकार की एजेंसियां एंटी करप्शन ब्यूरो और एंटी टेररिस्ट सेल ने की थी.

कहा यह भी जाता है गहलोत सरकार के इशारे पर जांच एजेंसियों ने इन ऑडियो टेप को वायरल किया था. हालांकि इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई थी. जिसमें कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा, संजय जैन और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत बात करते हुए सुनाई दे रहे थे.

अब राजस्थान में भाजपा का पलड़ा भारी, गहलोत सरकार पर बनाने लगी दबाव
सचिन पायलट के विधायकों ने जब राजस्थान सरकार के खिलाफ ‘लॉबिंग’ शुरू की थी तब ‘मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि भाजपा की केंद्र सरकार मेरी सरकार गिराने की साजिश रच रही है’. मुख्यमंत्री गहलोत के इस बयान के बाद उनको राजस्थान की जनता ने सहानुभूति भी दिखाई थी. ‘अपनी सरकार बचाने के बाद गहलोत मजबूत नेता के तौर पर उभर कर सामने आए, जिससे उनकी कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व में भी सियासी ताकत बढ़ गई थी’.

लेकिन वक्त ने एक बार फिर पलटा मारा. अब भाजपा को राजस्थान की जनता के सामने गहलोत की पोल खोलने का पूरा अवसर मिल गया है, जिसके इंतजार में वह पिछले वर्ष से थी. ‘राजस्थान के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां ने कहा कि मंत्रियों, विधायकों की फोन टैपिंग कराने पर मुख्यमंत्री सीधे तौर पर दोषी हैं. पूनियां ने कहा कि गहलोत स्वीकार कर चुके हैं कि प्रदेश में इस प्रकार की परंपरा नहीं है, तो मुख्यमंत्री बताएं कि यह परंपरा किसने तोड़ी’.

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें तत्काल अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए और इस प्रकरण की सीबीआई से जांच होनी चहिए. वहीं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी इस मामले को लेकर हमलावर नजर आए और उन्होंने इस बारे में कई ट्वीट किए. उन्होंने कहा कि, भाजपा ने पिछले साल जुलाई में यही कहा था राजस्थान में आपातकाल चल रहा है. गहलोत सरकार ने उस समय इनकार किया था, और अब स्वीकार कर रही है कि फोन टेप किए गए. यह निजता का हनन है, लोकतंत्र की हत्या है.

‘केंद्रीय मंत्री शेखावत ने कहा कि गहलोत के दामन में सैकड़ों दाग हैं, पर ये दाग इतना गहरा है कि इससे न केवल सरकार का बल्कि प्रशासन का भी चेहरा स्याह दिख रहा है’. फोन टैपिंग मामले की गूंज राजस्थान से निकलकर दिल्ली तक भी सुनाई देने लगी है. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी अपनी रणनीति बनाने में जुटा हुआ है कि किस प्रकार गहलोत सरकार से अपने ऊपर लगाए गए तमाम आरोपों का बदला लिया जाए और राजस्थान कांग्रेस सरकार को कमजोर किया जाए.

फोन टैपिंग के मामले में पहले भी देश की सियासत हो चुकी है गर्म
राजस्थान में फोन टैपिंग कोई नई बात नहीं है, इससे पहले भी देश की राजनीति में यह मामला खूब सुर्खियों में रहा था. लगभग 33 वर्ष पहले वर्ष 1988 में कर्नाटक में फोन टैपिंग के मामलों ने राजनीति में हलचल मचा दी थी. उस समय जनता पार्टी के रामकृष्ण हेगड़े कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. तब हेगड़े की सरकार के समय राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने 60 से अधिक नेताओं व मंत्रियों के फोन टेप कराने के आदेश दिए थे.

उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे.प्रधानमंत्री राजीव गांधी बोफोर्स मामले में विपक्ष से घिरे हुए थे. तब जनता पार्टी की हेगड़े की सरकार के खिलाफ केंद्र को जांच का मौका मिल गया. कांग्रेस ने ये मामला जबरदस्‍त उछाला और एजेंसी को जांच करने का आदेश दिया. केंद्र की कांग्रेस सरकार के दबाव में आकर फोन टैपिंग के इस चर्चित मामले में रामकृष्ण हेगड़े को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

ऐसे ही वर्ष 2005 में समाजवादी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद दिवंगत अमर सिंह केे फोन टैपिंग मामले ने भी राजनीति गर्म कर दी थी. अमर सिंह ने केंद्र सरकार और सोनिया गांधी पर फोन टैपिंग का गंभीर आरोप लगाए थे. अमर सिंह ने अपनी बातचीन को टेप किए जाने का आरोप लगाया था. ये केस सुप्रीम कोर्ट में 4 वर्षों तक चला था और अंत में अमर सिंह ने स्‍वयं ही अपना आरोप वापस ले लिया था. उसके बाद नीरा राडिया टेप कांड अब तक की सियासत में सबसे चर्चित रहा था.

इनकम टैक्स विभाग ने 2008 से 2009 के बीच नीरा राडिया और कुछ राजनेताओं व कॉरपोरेट घरानों के बीच बात टेप की थी. इसमें कुछ पत्रकार भी शामिल थे. नीरा राडिया पर पॉलिटिकल लॉबिंग का भी आरोप लगा था. ‘टेप कांड के बाद खुलासा हुआ कि राडिया किस नेता को कौन सा मंत्री पद दिया जाएगा, ऐसी लॉबिंग करती थी’. इसमें तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा का भी नाम सामने आया था.

बता दें कि टाटा समूह और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसे दिग्गज कॉरपोरेट ग्राहकों के लिए पीआर कन्सल्टेंसी देने वाली कंपनी ‘वैष्णवी ग्रुप’ की प्रवर्तक थी नीरा राडिया. इस फोन टैपिंग के बाद राडिया ने इस कारोबार को छोड़ दिया था. ऐसे ही मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और एनसीपी चीफ व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार के भी फोन टेप किए गए थे. देश में फोन टैपिंग के ऐसे कई मामले दबे पड़े हैं लेकिन वह सत्ता के दबाव के आगे अभी तक खुल नहीं सके हैं.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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