गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को राजधानी दिल्ली में अराजक हुए किसानों की ‘कलंक गाथा’ को देशवासी लंबे समय तक भूल नहीं पाएंगे. पूरे पांच घंटे तक हिंसा और आगजनी की लपटों में घिरी राजधानी लहूलुहान होती रही.
कानून व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर हजारों उपद्रवी किसान तांडव मचाते रहे. इन सबके बीच दिल्ली पुलिस लाचार बनी रही. राजधानी की सड़कों पर हिंसा की भयावह तस्वीरें देखकर पूरा देश अपने आप पर शर्मिंदा हुआ.
राजधानी की सड़कों पर हिंसा-आगजनी से दिल्लीवासी एक बार फिर से सहम गए. ऐसा नहीं है कि दिल्ली के लाल किले पर खुलेआम हिंसा के जिम्मेदार अराजक तत्व थे बल्कि इसमें कई किसान भी शामिल थे, जिन्होंने ट्रैक्टर परेड को हिंसा में तब्दील कर दिया.
गणतंत्र दिवस पर किसानों के मचाए गए उपद्रव की 32 साल पुरानी एक बार फिर यादें ताजा कर दी. बता दें कि उस समय दिल्ली में लाखों प्रदर्शनकारी किसानों के जमा होने के बावजूद उन्होंने देश को शर्मसार नहीं किया था लेकिन इस बार उग्र हुए किसानों और उपद्रवियों ने भारत की दुनिया भर में हंसी उड़ाई.
अब बात को आगे बढ़ाते हुए बताते हैं, राजधानी दिल्ली में 32 वर्ष पहले क्या हुआ था. तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार और प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. उस समय किसानों के नेता और भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत हुआ करते थे. टिकैत की अगुवाई में विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली में 1988 में बड़ी किसान रैली का आयोजन हुआ था.
इस रैली ने दिल्ली को ठप कर दिया था. हुआ यूं कि दिल्ली के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत कई राज्यों के हजारों किसानों ने राजधानी में एक बड़ा धरना प्रदर्शन किया था. उस दौरान किसान बैलगाड़ी से लेकर कार तक से आए थे. यह धरना-प्रदर्शन कई दिनों तक चला था.
लाखों की संख्या में दिल्ली में जमा हुए देश भर के किसानों ने इंडिया गेट, विजय चौक और बोट क्लब पर कब्जा कर लिया था. महेंद्र सिंह टिकैत को किसानों का मसीहा कहा जाता था, किसानों के बीच वह बाबा टिकैत कहलाते थे और उनकी ऐसी पहुंच थी कि एक उनकी आवाज में लाखों किसान इकट्ठा हो जाते थे. उस रोज भी दिल्ली में ऐसा ही हुआ था.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार