भारत विभिन्न संस्कृति, धार्मिक परंपराएं और त्योहारों का देश माना जाता है. देश में त्योहारों के साथ लोक पर्व भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. सावन के महीने में त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. रविवार को हरियाली तीज मनाई गई.
हरियाली तीज के एक दिन बाद नाग पंचमी मनाई जाती है . आज नाग पंचमी पर्व पूरे देश भर में मनाया जा रहा है. यह पर्व सीधे भगवान भोलेनाथ और नाग देवता से जुड़ा हुआ है. शास्त्रों में सांपों को भी ‘देवता’ माना गया है. तभी इन्हें ‘नाग देवता’ भी कहा जाता है. शास्त्रों में नाग पंचमी के दिन का विशेष महत्व है.
इस दिन लोग नागों का प्रतीक चित्र बनाकर पूजा करते हैं और नागों को दूध पिलाने का भी विधान है. नाग पंचमी हर साल श्रावण माह शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. इसे लेकर प्राचीन समय से धार्मिक परंपराएं भी चली आ रही हैं. महिलाएं नाग देवता की पूजा करती हैं. और घर में सुख-शांति के लिए उनकी प्रार्थना करते हैं.
भगवान शिव के साथ-साथ नाग देवता की पूजा की जाती है. पूजा करने से कुंडली से कालसर्प दोष के साथ-साथ राहु-केतु के दुष्प्रभाव कम हो जाते है. इसके साथ ही सांपों से संबंधित हर तरह का भय खत्म हो जाता है. बता दें कि आज यानी नाग पंचमी के दिन 30 साल में पहली बार ‘शिवयोग’ के दौरान नाग पंचमी पड़ी है.
यह दुर्लभ संयोग है. इस दिन भगवान की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है ये पर्व भगवान शिव और नाग देवता से संबंधित होता है और नाग देवता की पूजा करके कोई भी व्यक्ति पापों से मुक्ति पाता है, इसके अलावा वे व्यक्ति शिव का भी आशीर्वाद प्राप्त करने में सफल रहता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर नाग पंचमी पर्व की शुरुआत कैसे हुई. आइए जानते हैं नागपंचमी शुरू होने की पौराणिक कथा.
भगवान श्रीकृष्ण और ऋषि आस्तिक मुनि से भी जुड़ी है नाग पंचमी-:
बता दें कि नाग पंचमी का पर्व भगवान श्री कृष्ण और ऋषि आस्तिक मुनि से भी जुड़ा हुआ है. नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन रोक दिया और नागों की रक्षा की. इस कारण तक्षक नाग के बचने से नागों का वंश बच गया.
आग के ताप से नाग को बचाने के लिए ऋषि ने उन पर कच्चा दूध डाल दिया था. तभी से नाग पंचमी मनाई जाने लगी. शास्त्रों के मुताबिक नाग पंचमी का एक किस्सा भगवान कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है. महाभारत कथाओं में भी नाग पंचमी का उल्लेख मिलता है. भगवान श्रीकृष्ण और कालिया नाग की पौराणिक कथाओं में उल्लेखित है.
भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे तब ही खेलते समय उनकी गेंद नदी में जा गिरी. इस नदी में कालिया नाग का वास था. भगवान श्री कृष्ण गेंद को लाने के लिए नदी में कूद पड़े. तब ही कालिया नाग ने भगवान श्रीकृष्ण पर हमला कर दिया. लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को सबक सिखा दिया.
जिसके बाद भगवान कृष्ण से कालिया नाग ने मांफी मांगी और वचन दिया कि वो अब से किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा. कहते है कि कालिया नाग पर श्री कृष्ण की विजय को भी नाग पंचमी पर्व के रूप में मनाया जाने लगा. वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में नाग पंचमी के दिन गुड़िया का त्योहार भी मनाया जाता है.
इस त्योहार को कुछ अलग तरीके से मनाया जाता है. दरअसल, नागपंचमी के दिन उत्तर प्रदेश में गुड़िया को पीटा जाता है. अधिकांश पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में गुड़िया को पीटा जाता है. इसके अलावा सपेरे आज सांपों को लेकर घर-घर दूध पिलाते हैं.
शंभू नाथ गौतम