ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा को समर्पित त्योहार बसंत पंचमी इस साल 26 जनवरी को गुरुवार के दिन मनाया जाएगा. हिंदू कैलेंडर के अनुसार बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है. इस दिन मां सरस्वती की पूजा होती है इसलिए इस त्योहार को कई जगह सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है. यहां आप जानेंगे बसंत पंचमी की पूजा विधि, मंत्र, कथा, आरती, शुभ मुहूर्त और सबकुछ.
बसंत पंचमी 2023 शुभ मुहूर्त-:
पंचमी तिथि 25 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से लेकर 26 जनवरी सुबह 10 बजकर 28 मिनट तक रहेगी. बसंत पंचमी पर्व 26 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 12 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा.
बसंत पंचमी पूजा विधि-:
इस दिन घरों के साथ-साथ स्कूल और संस्थानों में मां सरस्वती की पूजा की जाती है. कोशिश करें इस दिन पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र पहनें. साथ ही मां सरस्वती की प्रतीमा को भी पीले रंग के कपड़े पर स्थापित करें. उनकी पूजा में रोली, मौली, हल्दी, केसर, अक्षत, पीले या सफेद रंग का फूल, पीली मिठाई आदि चीजों का प्रयोग करें. मां की वंदना करें और पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र या अपनी किताबों को रखें.
सरस्वती पूजा मंत्र-:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता.
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता.
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्.
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्.
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥
क्यों मनाई जाती है बसंत पंचमी?
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा जी ने समस्त संसार की रचना की. लेकिन फिर भी उन्हें अपनी रचना में कमी लगी. इसलिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई. उस स्त्री के एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था. ब्रह्मा जी ने इस सुंदर देवी से वीणा बजाने को कहा. जैसे ही उन्होंने वीणा बजायी ब्रह्मा जी के बनाई हर चीज में मानो सुर आ गया. इसके बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें वीणा की देवी सरस्वती का नाम दे दिया. वह दिन बसंत पंचमी का था. यही कारण है कि हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाने लगा और उनकी पूजा की जाने लगी.