साल 2020-21 भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए अशांति के लिए जाने जाएंगे. करीब डेढ़ साल पहले शुरू हुई कोविड-19 महामारी ने विश्व भर में उथल-पुथल मचाई. तमाम देशों के लोग डर के साए में जिंदगी जीने को मजबूर हुए. वैसे अभी भी कोरोना की ‘दहशत’ खत्म नहीं हुई है. इस महामारी ने करोड़ों लोगों की जिंदगी में ‘शांति और सुकून’ गायब कर दिया. ‘कुछ महीनों से दुनिया इस महामारी से उभर ही रही थी कि तालिबानों ने डंके की चोट पर हिंसा का सहारा लेकर अफगानिस्तान पर कब्जा करके दुनिया के ‘शांति मिशन एजेंडे’ पर करारा तमाचा मारा’.
अफगानिस्तान की सड़कों पर तालिबान लड़ाकों के कत्लेआम से तमाम देश ‘सहम’ गए.’ आज भागदौड़, व्यस्त और हिंसक होती जिंदगी में करोड़ों लोग शांति की तलाश कर रहे हैं’. आज हमारी चर्चा का विषय भी ‘शांति’ है. आइए बात को आगे बढ़ाते हैं. आज ऐसा दिवस है जो शांति स्थापित करने के लिए जाना जाता है. जी हां हम बात कर रहे हैं ‘अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस’ की. हर साल 21 सितंबर का दिन दुनिया भर में विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम रहे और संघर्ष एवं झगड़ों से निपटारा हो सके.
‘विश्व शांति दिवस पर सफेद कबूतरों को उड़ाकर शांति का पैगाम दिया जाता है और एक दूसरे से भी शांति कायम रखने की अपेक्षा होती है, सफेद कबूतर को शांति का दूत माना जाता है’. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र से लेकर अलग-अलग संगठनों, स्कूलों और कॉलेजों में शांति दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस बार अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस की थीम ‘Recovering Better for an Equitable and Sustainable World’ रखी है. दुनियाभर में शांति का संदेश पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, संगीत, सिनेमा और खेल जगत की प्रसिद्ध हस्तियों को शांतिदूत नियुक्त किया हुआ है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार