क्या होती है कावड़ यात्रा और क्‍या है इसका इतिहास? पढ़ें… यात्रा के कठोर नियम सहित कई अदृभुत तथ्‍य

इस वर्ष भगवान शिव के प्रसन्‍न करने का पर्व आगामी चार जुलाई से शुरू हो रहा है। इसके साथ ही हरिद्वार सहित पूरी देवभूमि केसरिया रंग में नजर आएगी। हर वर्ष की तरह इस बार भी हरिद्वार और ऋषिकेश में दूसरे राज्‍यों के कांवड़ यात्री पहुंचेंगे और गंगा जलभर कर भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे।

लेकिन क्‍या आपको कांवड़ यात्रा के इतिहास के बारे में जानकारी है? क्‍या आपको पता है कि यह यात्रा कितनी कठोर होती है? नहीं, तो आज हम आपको कांवड़ यात्रा के कुछ ऐसे ही रोचक तथ्‍य बताने जा रहे हैं…

मान्यता है कि जब समुद्रमंथन के बाद निकले विष पान कर भगवान शिव ने दुनिया की रक्षा की थी। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया था। कहते हैं इसी विष के प्रकोप को कम करने और उसके प्रभाव को ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। इस जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवाना भक्‍तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

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