जनरल बिपिन रावत के निधन से पूरा देश शोक में है. देशवासी उनके अदम्य साहस और वीरता को याद कर रहे हैं. आम फौजी से लेकर देश के सीडीएस के पद तक पहुंचने वाले जनरल बिपिन रावत साहस की मिसाल थे. वैसे तो उनकी जांबाजी के अनेकों किस्से हैं, जो अब सामने आ रहे हैं. लेकिन बड़ा सच ये है कि उन्होंने देश की थल सेना में दूसरे नंबर की कमान संभालते ही आतंकवाद को पैदा करने और उसे पालने-पोसने वाले पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को ये अहसास करा दिया था कि भारत शांति, सदभाव में यकीन रखता है लेकिन अगर वो इसे हमारी कायरता समझता है, तो फिर हमें ऐसा जवाब देना भी आता है, जिसे वह कभी भुला नहीं पाएगा.
इसे संयोग ही कहेंगे कि पाकिस्तान ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया और जब नौबत ये आ ही गई थी, तो अपनी रगों में बह रहे पहाड़ी खून ने उसका मुंहतोड़ जवाब देने में कभी पीछे नहीं हटे. जनरल रावत के आकस्मिक निधन से देश में खामोशी छाई हुई है। हर कोई अपने महान योद्धा के जाने पर दुखी है। वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड सदमे में है. राजधानी देहरादून से लेकर जनरल बिपिन रावत के पैतृक गांव पौड़ी गढ़वाल तक सन्नाटा छाया हुआ है. कोई भी विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है कि अब देवभूमि के जांबाज योद्धा बिपिन रावत नहीं रहे.
जनरल रावत को भी अपनी माटी देवभूमि से बहुत लगाव था. उत्तराखंड में जब-जब बड़ी विपत्ति आती थी तो लोग बिपिन रावत को ही याद करते थे. कई बड़ी से बड़ी मुश्किलों का वह सरलता से मुकाबला करते. साल 2015 में पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में उनका हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था. वहां से वह सकुशल वापस लौट आए थे. ’जनरल बिपिन रावत हमेशा कहते थे अभी मुझे देश के लिए बहुत काम करना है, मेरी रगों में उत्तराखंड का खून और पानी है, मैं इतनी आसानी से मरने वाला नहीं हूं. लेकिन नियति पर भला किसका वश रहा है. तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हेलीकॉप्टर हादसे में जनरल बिपिन रावत नहीं लौट सके. पाकिस्तान, चीन और पूर्वोत्तर राज्यों में देश की सुरक्षा के लिए हमेशा वे सीना तान कर खड़े रहे.
अपने चार दशकों के करियर में वो हमेशा अगल सोच और वर्किंग स्टाइल के लिए जाने जाते थे. जनरल बिपिन रावत के चले जाने से सेना को बड़ी क्षति हुई है. उत्तराखंड के एक छोटे से गांव से आए जनरल बिपिन रावत देश के हर नौजवान के लिए उम्मीद की किरण थे. उनका पूरा जीवन राष्ट्र सेवा और राष्ट्र रक्षा को समर्पित रहा. बता दें कि कोरोना संकटकाल में भी जनरल रावत सेना को मजबूत करने के साथ देश की सुरक्षा के लिए भी दिन रात लगे रहे. सीडीएस बनने के बाद उनकी जिंदगी और भी व्यस्त हो गई थी. दिसंबर 2016 में भारत सरकार ने जनरल बिपिन रावत से वरिष्ठ दो अफसरों को दरकिनार कर सेना प्रमुख बनाया था.तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए उन्होंने ऐतिहासिक कदम उठाए. उन्होंने नई लीक तैयार की. जिस पर शक्तिशाली भारत मजबूती से आगे बढ़ रहा है.
बिपिन रावत को अशांत इलाकों और बॉर्डर पर काम करने का शानदार अनुभव था–
जनरल बिपिन रावत के पास अशांत इलाकों में लंबे समय तक काम करने का अनुभव था. भारतीय सेना में रहते उभरती चुनौतियों से निपटने, नॉर्थ में मिलटरी फोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी फ्रंट पर लगातार जारी आतंकवाद व प्रॉक्सी वॉर और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष के लिहाज से उन्हें सबसे सही विकल्प माना जाता था. बात जून 2015 की है. मणिपुर में हमारी सेना पर आतंकी हमला हुआ.
18 सैनिकों की शहादत से देश में उबाल था. उस दौर में संयोग से 21 पैरा थर्ड कॉर्प्स के कमांडर बिपिन रावत ही थे. उन्होंने दुनिया को दिखाया कि भारत पर आंच आती है तो क्या होता है. इस यूनिट के पैरा कमांडो ने सरहद पार करके म्यांमार में ऑपरेशन किया और आतंकी ग्रुप के 60 से ज्यादा आतंकियों को उनकी मांद में ही घुसकर ढेर कर दिया. ऐसे ही पाकिस्तान की हरकतों का जवाब उन्होंने अपने अंदाज में दिया. 29 सितंबर 2016 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भारतीय सेना की स्पेशल कमांडो यूनिट ने रातों-रात ऑपरेशन किया. कई आतंकियों के साथ पाकिस्तान के सैनिक भी ढेर कर दिए.
यह हमारे उरी और सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमला का जवाब था. सर्जिकल स्ट्राइक और एलएसी पर भारत के रुख में भी रावत का बड़ा योगदान था. उन्होंने इस पद पर रहते हुए कई अहम फैसले लिए और उन्हें अंजाम तक पहुंचाया. जनरल रावत के बतौर थलसेनाध्यक्ष सबसे अहम मिशन की बात की जाए तो वह बालाकोट एयर स्ट्राइक है. फरवरी 2019 में जब पाकिस्तान में घुसकर आतंकी कैंपों को नष्ट किया गया था तो थल सेना की कमान जनरल रावत के हाथ में ही थी. जिसके दम पर सशस्त्र सेनाओं ने कई बड़ी कामयाबी हासिल की और हर छोर पर देश की सरहद की सुरक्षा मजबूत हुई. उन्होंने भारत की युद्धनीति को नई दिशा दी. चीन और पाकिस्तान पर नकेल कसने के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.
–शंभू नाथ गौतम