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चमोली आपदा पर जलपुरुष राजेन्‍द्र सिंह बोले, डैम से तबाह हो रहा उत्‍तराखंड, बिहार पर भी मंडरा रहा खतरा

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चमोली त्रासदी
चमोली त्रासदी

उत्तराखण्ड में रविवार को हुई तबाही का कसूरवार प्रकृति नहीं है। प्रकृति के इस गुस्से का जिम्मेदार मानव है। उत्तराखण्ड तबाही की मुख्य वजह अलकनंदा नदी पर डैम बनाना ही है जिसका वे पिछले 20 साल से विरोध कर रहे हैं। बिहार पर भी ऐसा ही एक खतरा मंडरा रहा है। यह कहना है प्रसिद्ध पर्यावरणविद व जलपुरुष राजेन्द्र सिंह का।

वे मंगलवार को मदन मोहन मालवीय प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने के लिए महानगर पहुंचे। उन्होंने आगाह किया है कि विकास के दौर में सुरक्षा को भूल जाने पर इस तरह की घटनाओं से भुगतना होगा।

उनका कहना है कि साइंस व सेंस में सामंजस्य बैठाकर ही हम प्रकृति के गुस्से को रोक सकते हैं। जलपुरुष ने कहा कि वे पिछले 20 साल से कह रहे हैं कि भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में नदियों को बांधना नहीं चाहिए।

इसके साथ ही अलकनंदा, मंदाकिनी व भागीरथी मिलकर गंगा बनती हैं। इन तीनों नदियों में बायोफॉज (देवतत्व) मिलता है। जो कि बीमारियों के इलाज में प्रयोग होगा। इन नदियों के जल के सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। ये तीनों नदियां भूकम्प प्रभावित क्षेत्र हैं और वहां कोई भी बड़ा निर्माण नहीं कर सकते हैं। कुछ भी बड़ा निर्माण करेंगे तो इस तरह का खामियाजा भुगतना होगा। नदियों को बांधने से ही इस तरह की तबाही आती है। उनका कहना है कि गनीमत रही कि यह प्रलय दिन में आई, रात में आती तो और तबाही होती।

जल से ही हुआ है प्रकृति का सृजन
उन्होंने कहा कि जल से ही प्रकृति का सृजन हुआ है। इसलिए इसका सम्मान करना हम सबका धर्म भी है। अपनी आस्था व अपने विज्ञान को समझकर नदियों को बांधना चाहिए। अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी को उत्तराखंड में देवनदियां माना जाता है। यह नदियां अपनी आजादी से बहती थीं तो गंगा में ऐसे तत्व थे जोकि मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते थे।

अब जबकि बांध बनाकर अवरोध पैदा कर दिया गया तो ये तत्व सिल्ट के साथ नीचे बैठ जाते हैं। इन तीनों नदियों को आजाद बहने दीजिए, कोई डैम, बैराज न बनाइए। विकास के लिए बिजली वगैरह जरूरी है तो उसके लिए ऐसी तमाम नदियां हैं जिन्हें अवरोधों के साथ जीना पसंद हैं, वहां डैम बनाइए। भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इन तीन नदियों को बांध बनाने से बख्शना होगा।

उत्तराखण्ड के बाद बिहार पर भी खतरा
उन्होंने बताया कि बिहार पर भी उत्तराखंड जैसा खतरा मंडरा रहा है। बिहार के पुरुलिया के पास बह रही झील की दिवार कभी भी फट सकती है। यह झील नेपाल से जुड़ी है। इसको लेकर नेपाल सरकार ने बिहार को अलर्ट भेज दिया है।

नेपाल ने जारी चेतवानी पत्र में सलाह दी है कि झील के निचले जिलों में सतर्कता बरती जाए और निचले इलाकों से लोगों को हटा दिया जाए। अगर झील की दीवार फटी तो प्रलय का असर पश्चिम बंगाल तक होगा। उन्होंने कहा कि अगर वक्त रहते सचेत नहीं हुआ गया तो भविष्य में ऐसे जल-प्रलय आएंगे।

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