आमतौर पर हम लोग दिन की बात करते हैं लेकिन आज बात करेंगे रात की. एक ऐसी रात जिसमें पर्व, उत्सव के साथ सदियों पुरानी कई धार्मिक परंपराएं भी जुड़ी हुई हैं. इस चांदनी रात का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. जी हां हम आज चर्चा करेंगे शरद पूर्णिमा की. अश्विन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जा रही है. सुबह से ही सोशल मीडिया पर बधाई-शुभकामनाओं का संदेश देने का सिलसिला जारी है.
कहीं-कहीं यह त्योहार कल यानी 20 अक्टूबर को भी मनाया जाएगा. वैसे तो पूर्णिमा पूरे साल में 12 बार आती है लेकिन शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म में विशेष महत्व के साथ कई प्राचीन धार्मिक आस्थाओं की याद दिलाती है. ‘इस रात चंद्रमा अपने पूरे यौवन पर रहता है, ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है’. चंद्रमा से निकलने वाली किरणें अमृत समान मानी जाती हैं, कहावत ये भी है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से ‘अमृत’ बरसता है. मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होता है.
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, इसलिए चांद की रोशनी पृथ्वी को अपने आगोश में ले लेती है. चांदनी पूरी रात उत्सव करती है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं. जो भी मनुष्य शरद पूर्णिमा की रात्रि को जागरण करता है, मां लक्ष्मी उससे प्रसन्न होती हैं. आसमान से बरसते अमृत के बीच हमारे देश में ‘खीर’ खाने की सदियों पुरानी परंपरा रही है.
मान्यता है कि चंद्रमा से निकलने वाली किरणों से अमृत की वर्षा होती है. इसलिए इस दिन चंद्रमा को भोग में खीर अर्पित की जाती है और इसे खुले आकाश के नीचे रखा जाता है जिससे खीर में भी चद्रमा की रोशनी पड़े और इसमें भी अमृत का प्रभाव हो सके. इस दिन से शीत ऋतु की शुरुआत भी होती है. शरद पूर्णिमा का व्रत करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कहा जाता है कि यही वो रात है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है.
धार्मिक मान्यता है कि श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ जन्म लिया था, जबकि भगवान राम के पास 12 कलाएं थीं. बता दें कि पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ आज, 19 अक्टूबर को शाम 7 बजे से शुरू हो कर 20 अक्टूबर को रात्रि 8 बजकर 20 मिनट तक होगा. पूर्ण चंद्र दर्शन 19 अक्टूबर की रात्रि को होगा और इस दिन चंद्रमा पूर्ण कलाओं से युक्त होगा. इस रात चंद्रमा को खीर का भोग लगाया जाता है. शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है. इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न ही धूल-गुबार. भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना अत्यंत शुभ माना जाता है. बता दें कि शरद पूर्णिमा की रात चांद पृथ्वी के सबसे निकट होता है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार