जिलों में संचालित अदालतों पर बढ़ते मुकदमों के बोझ को कम करने के लिए हाई कोर्ट ने सख्त दिशा निर्देश जारी किए हैं। जिला न्यायाधीशों को जारी सर्कुलर में कहा गया है कि कि पीठासीन अधिकारियों को खुद मुकदमे की मॉनिटरिंग करनी होगी। अब किसी आरोपित के बयान कंप्यूटर में ही दर्ज होंगे। यह सुनिश्चित करना होगा कि समयाभाव में किसी मामले को स्थगित ना किया जाए।
कार्यालय से अभिलेख तलब करने की निगरानी भी पीठासीन अधिकारी करेंगे। हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल अनुज कुमार संगल की ओर से निचली अदालतों को यह सर्कुलर जारी किया गया है। इसमें तमाम दिशा-निर्देश शामिल हैं। आदेश के अनुसार साक्ष्य की रिकॉर्डिंग बिना किसी हस्तक्षेप के पीठासीन अधिकारी की ओर से किया जाना चाहिए। किसी भी स्थिति में दो मामले एक साथ नहीं उठाए जाने चाहिए।
न्यायालय में प्रस्तुत आवेदन, जिसमें कार्यालय से अभिलेख तलब किया जाता है, की निगरानी पीठासीन अधिकारी करेंगे। हाई कोर्ट के जारी सर्कुलर के अनुसार पक्षकार को रीडर या कोर्ट क्लर्क से संपर्क नहीं करना चाहिए। जमानत बांड पर उसी दिन कार्रवाई हो और रिहाई आदेश उसी दिन जेल में पहुंच जाए। इसे रीडर, कोर्ट क्लर्क या कोर्ट मोहर्रिर के पास नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
यह कार्यशैली भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। पीठासीन अधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रिहाई आदेश सही है। यह भी अपेक्षा की गई है कि एक आपराधिक मुकदमे में आरोप तय करने का कार्य आशुलिपिक-अभियोजक पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इसे पीठासीन अधिकारी खुद निर्देशित करें।