बीते कुछ समय से कम उम्र के लोगों में हार्ट अटैक के मामले तेज़ी से देखे जा रहे हैं। हाल के महीनों में हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट की वजह से कई लोग अपनी जान गंवा रहे है। इतना ही नहीं कई घटनाएं ऐसी भी सामने आईं जिनमें कम उम्र के पुरुषों ने डांस या जिम में वर्जिश करते हुए जान गंवाई। विशेषज्ञों के अनुसार यदि हृदय से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या है तो दौड़ना, जिम में व्यायाम करना, डांस करना घातक हो सकता है।
इंडियन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार, बीते सालों में 50 वर्ष से कम उम्र के 50 फ़ीसदी और 40 साल से कम उम्र के 25 फ़ीसदी लोगों में हार्ट अटैक का जोखिम देखा गया है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं में हार्ट अटैक के मामले बेहद कम हैं। इससे साफ़ समझा जा सकता है कि पुरुषों को दिल से जुड़ी समस्याओं का ज़्यादा सामना करना पड़ रहा है।
हालांकि इसके तार सीधे-सीधे जीवनशैली से जुड़े हुए हैं। धूम्रपान और शराब की लत युवाओं में कार्डियोवैस्कुलर डिसीज़ के लक्षण पैदा कर दती है। इसके बाद शरीर में फैट जमता है और फिर उसे कोरोनरी हार्ट बीमारी हो जाती है। शराब के अधिक सेवन से रक्तचाप बढ़ता है, जिसका सीधा असर रक्त वाहिकाओं पर पड़ने से हार्ट पंपिग शुरू हो जाती है। इससे हार्ट अटैक होने का ख़तरा बढ़ जाता है। इसी के साथ गलत खान पान भी हार्ट अटैक का बड़ा कारण है।
मानसिक तनाव भी एक कारण कारण है। काम का बोझ सीधा रक्त वाहिकाओं पर असर डालता है। इसके कारण युवा और मध्यवय के लोग रक्तचाप जैसी बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं। नींद की कमी से जूझ रहे लोगों में हार्ट अटैक का ख़तरा अधिक होता है।
आपको बता दे कि सीने, पीठ, गले व जबड़े, दोनों कंधों में दर्द है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। यदि उलझन है, पसीना आ रहा है, सांस फूल रही है, दो क़दम चलने में अधिक दिक़्क़त आ रही है, घबराहट महसूस हो रही है, पाचन क्रिया में ज़्यादा परेशानी आ रही है, गैस बन रही है, बहुत थकान है या फिर चक्कर आ रहे हैं तो टालें मत और तुरंत जांच कराएं। हृदय से जुड़े इन लक्षणों को नज़रअंदाज़ बिल्कुल न करें, जैसे छाती में दर्द, बेचैनी, सांस लेने में समस्या या फिर सांसों का तेज़ी से चलना, उलझन और पसीना आ रहा है तो ये हार्ट अटैक के लक्षण हो सकते हैं।
सवाल ये है कि…
सिर्फ़ पुरुष ही दिल के दौरों के शिकार हो रहे हैं? दरअसल, स्त्री और पुरुष का मूल स्वभाव इसकी वजह हो सकती है। स्त्रियां संवाद कर लेती हैं, रो लेती हैं, हंस लेती हैं और ख़ुश हो लेती हैं। अगर स्त्रियों को ख़ुशी में नाचने का मन करता है तो वो इसे ज़ाहिर करती हैं। पुरुष इसके विपरीत होते हैं। खलुकर कुछ कहने से झिझकते हैं और मन के विचार बाहर आने नहीं देते। पुरुष बहुत ज़्यादा ख़ुशी में न तो उछल-कूद मचाते हैं और न ही ग़म में रोते हैं। कभी कोई भूले से रो भी दे उसे कहा जाता है कि ‘क्या औरतों की तरह रो रहा है।’
ऐसे में जब मन ही ख़ुश नहीं है तो क्या शरीर की ऊपरी मज़बूती स्वस्थ रख सकती है? मज़बूत शरीर और कमज़ोर मन असल में यही असामयिक मृत्यु का कारण बन जाता है। हाथ-पैरों के जोड़ खोलने से पहले दिल को खोलिए। गिनकर हज़ारों क़दम चलने से पहले किसी अपने की ओर सिर्फ़ चार क़दम बढ़ा दीजिए। संवाद कीजिए और संवाद के लिए पहल कौन करेगा यह मत सोचिए। संवाद करेंगे तो संवेदनाएं कायम रहेंगी और संवेदनाएं ही आपको सकारात्मक रहने की ताकत देंगी। संवेदनाएं होंगी तो आप ख़ुशी, ग़म, आश्चर्य, इन सबकी अभिव्यक्ति बेहतर तरीक़े से कर पाएंगे और यह अभिव्यक्ति ही आपको, आपके दिल को स्वस्थ रख पाएगी। अपने मन को घुटन से बचाइए और दिल को ख़ुलकर सांस लेने दीजिए।