घर-आंगन और पेड़ पर नन्ही सी चिड़िया फुर से उड़ जाती, फिर आ जाती. चिड़िया की चहचहाहट के बीच कई यादें आज भी बनी हुई है.
सभी ने बचपन चिरैया के साथ बिताया होगा, इसकी नटखट शरारतों ने लुभाया होगा.
आज विश्व गौरैया दिवस है। इस मौके पर प्यारी नन्ही सी चिड़िया के बारे में चर्चा की जाए.
घर के आंगन में ची ची करने वाली गौरैया अब कम ही नजर आती है, इसकी चहचहाट भी कम होती जा रही है. गौरैया को शुरू से ही मनुष्य से नजदीकी पसंद आई हैं.
इसलिए यह आबादी के पास स्थित घरों में घोंसला बनाकर रहती है. पहले शहरों में मकान खुले होते थे । घरों के आसपास के पेड़ों की संख्या भी ज्यादा थी.
गौरैया आसानी से घर के अंदर घोंसला बना लेती थी. घरों की बाहरी दीवार में बने मोखला भी गौरैया का घर होते थे. समय के साथ मकान बनाने में परिवर्तन आते गए.
अब मकान छोटे और पूरी तरह बंद हो गए हैं. घरों के आसपास पेड़ भी नहीं रहे इस वजह से गौरैया के घोंसले विलुप्त हो गए हैं.
गौरैया की संख्या कम होने का बड़ा कारण यह भी है कि देश भर में वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव और पर्यावरण में पिछले कुछ वर्षों से हो रहे परिवर्तन की गौरैया तेजी से विलुप्त होती जा रही है. विश्व गौरैया दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य इस चिरैया की रक्षा और संरक्षण करना है.
बता दें कि इस वर्ष विश्व गौरैया दिवस की थीम ‘आई लव स्पैरो’ है. विषय इस उम्मीद से प्रेरित है कि अधिक से अधिक लोग उस बंधन का जश्न मनाने के लिए आगे आएंगे जो अतीत में मनुष्यों के साथ रहा है.
साल 2010 से विश्व गौरैया दिवस मनाने की हुई थी शुरुआत
देश और दुनिया भर में तेजी से लुप्त होती जा रही गौरैया को बचाने, और इसके संरक्षण के उद्देश्य से 20 मार्च, साल 2010 में विश्व गौरैया दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी.
उसके बाद, हर साल इस दिन को दुनिया भर में गौरैयों और पर्यावरण से प्रभावित अन्य आम पक्षियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है
भारत में द नेचर फॉरएवर सोसाइटी ने विश्व गौरैया दिवस मनाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पहल शुरू की.
यह सोसाइटी फ्रांस के इको-सिस एक्शन फाउंडेशन के सहयोग से काम करती है. द नेचर फॉरएवर सोसाइटी की स्थापना एक भारतीय संरक्षणवादी मोहम्मद दिलावर ने की थी, जिन्होंने नासिक में घरेलू गौरैयों की मदद करने के लिए अपना काम शुरू किया था.
बता दें कि भारत के अलावा एशिया महाद्वीप के तमाम बड़े देशों चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश श्रीलंका, नेपाल, म्यामार के अलावा अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, महाद्वीप के तमाम देशों में भी गौरैया की तमाम प्रजातियां पाई जाती हैं.
लेकिन पर्यावरण में आए बदलाव और इंसानों की बदलती जीवन शैली से गौरैया पूरी दुनिया से तेजी से कम हो रही है. गौरैया संरक्षण के लिए हम अपनी छत पर दाना-पानी रखें, अधिक से अधिक पेड़- पौधे लगाएं, उनके लिए कृत्रिम घोंसलों का निर्माण करें.
दूसरों को गौरैया संरक्षण के प्रति जागरूक करें. आओ एक बार फिर गौरैया को घर आंगन में लाएं इनकी भी सुने, इनके साथ कुछ समय बिताएं.
आज विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर आओ हम सभी लोग एक बार फिर से इस नन्ही चिड़िया को याद करें और इसकी एक बार फिर से ची ची की आवाज सुने.
शंभू नाथ गौतम