13 दिसंबर का दिन इतिहास में देश विदेश की कई बड़ी घटनाओं के साथ दर्ज है. 2001 में 13 दिसंबर की सुबह आतंक का काला साया देश के लोकतंत्र की दहलीज तक आ पहुंचा था. देश की राजधानी के बेहद महफूज माने जाने वाले इलाके में शान से खड़े संसद भवन में घुसने के लिए आतंकवादियों ने सफेद रंग की एम्बेसडर का इस्तेमाल किया और सुरक्षाकर्मियों की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहे, लेकिन उनके कदम लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र कर पाते उससे पहले ही सुरक्षा बलों ने उन्हें ढेर कर दिया.
ये हमला लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद आतंकी ग्रुप के आंतकवादियों ने किया था. आतंकवादियों की संख्या 05 थी. ये सभी हथियारबंद थे. उन्होंने संसद भवन पर बमों और गोलियों से हमला किया था. इस हमले में 14 लोग मारे गए थे. इसमें हमले में शामिल 5 आतंकवादी भी थे. 08 सुरक्षाकर्मी और 1 माली भी इस हमले में शहीद हुए थे.
ससंद परिसर में गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं.आतंकवादी एके-47 लेकर एक सफेद एंबेसडर कार से संसद परिसर में घुसे थे. शुरू में तो आतंकवादी जिस तरह कार से अंदर घुसे उससे सुरक्षाकर्मियों को नहीं लगा कि वो आतंकवादी हैं लेकिन बाद में परिसर में उनकी हरकतों से ये अंदाज हो गया कि सेना की वर्दी पहनकर संसद परिसर में घुसे ये लोग गलत इरादे लेकर आए थे.
उस दिन कब क्या हुआ और कैसे हुआ. इसकी जानकारी हम दे रहे हैं. जो कुछ उस दिन हुआ उस पर आज भी विश्वास करना मुश्किल है लेकिन इस घटना के बाद संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव हुआ. इस बदलाव में नई तकनीक की भी मदद ली गई तो सुरक्षा बढ़ा दी गई.
सुबह 11 बजकर 20 मिनट
उस रोज उस वक्त, लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही ताबूत घोटाले पर मचे बवाल के चलते स्थगित हो चुकी थीं. वक्त था 11 बजकर 20 मिनट. इसके बाद तमाम सांसद संसद भवन से बाहर निकल गए. कुछ ऐसे थे जो सेंट्रल हॉल में बातचीत में मशगूल हो गए. कुछ लाइब्रेरी की तरफ बढ़ गए, कुल मिलाकर सियासी तनाव से अलग माहौल खुशनुमा ही था.
किसी को अंदाजा नहीं था कि आगे क्या होने जा रहा है. उधर दूर एक सफेद रंग की एंबैसेडर कार संसद मार्ग पर दौड़ी चली जा रही थी. घनघनाती हुई लाल बत्ती और सायरन की आवाज. किसी को शक की गुंजाइश ही नहीं थी. ये कार विजय चौक से बाएं घूमकर संसद की तरफ बढ़ने लगी. इस बीच संसद परिसर में मौजूद सुरक्षा कर्मियों के वायरलेस सेट पर एक आवाज गूंजी. उप राष्ट्रपति कृष्णकांत घर के लिए निकलने वाले थे, इसलिए उनकी कारों के काफिले को आदेश दिया गया कि तय जगह पर खड़ी हो जाएं. ये जगह थी संसद भवन के गेट नंबर 11 के सामने.
चंद ही सेकेंड में सारी गाड़ियां करीने से आकर गेट नंबर 11 के सामने लग गईं. उप राष्ट्रपति किसी भी वक्त बाहर आने वाले थे. तब तक सफेद एंबेसडर कार लोहे के दरवाजों को पार करते हुए गेट नंबर 12 तक पहुंच चुकी थी. इसी गेट से राज्यसभा के भीतर के लिए रास्ता जाता है. कार इस दरवाजे से उधर की ओर आगे बढ़ गई जहां उप-राष्ट्रपति की कारों का काफिला खड़ा था.
11 बजकर 35 मिनट
दिल्ली पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर जीतराम उप राष्ट्रपति के काफिले में एस्कॉर्ट वन कार पर तैनात थे. जीतराम को सामने से आती हुई सफेद एंबेसडर दिखाई दी. सेकेंडों में ये कार जीतराम के पास तक आ गई. उसकी कार के चलते रास्ता थोड़ा संकरा हो गया था. एंबेसेडर की रफ्तार धीमी होने के बजाय और तेज हो गई. वो कार की तरफ देखता रहा, अचानक ये कार बाईं ओर मुड़ गई.
जीतराम को कार के ड्राइवर की ये हरकत थोड़ी अजीब लगी जब कार पर लाल बत्ती है. गृह मंत्रालय का स्टीकर है तो फिर वो उससे बचकर क्यों भागी. जीतराम ने जोर से चिल्ला कर उस कार को रुकने को कहा. एएसआई की आवाज सुनकर वो कार आगे जाकर ठिठक गई. लेकिन वहीं इंतजार करने के बजाय उसके ड्राइवर ने कार पीछे करनी शुरू कर दी. अब जीतराम तेजी से उसकी तरफ भागा. इसी हड़बड़ी में वो कार उप राष्ट्रपति के काफिले की मुख्य कार से टकरा गई.
सेना की वर्दी पहनकर आए थे आतंकी
जब गाड़ी खड़ी थी तभी आतंकियों की गाड़ी ने उनकी कार में टक्कर मारी. इसके बाद विजेंदर सिंह ने गाड़ी में बैठे आतंकी का कॉलर पकड़ा और कहा कि दिखाई नहीं दे रहा, तुमने उपराष्ट्रपति की गाड़ी को टक्कर मार दी.
सुरक्षाकर्मियों के हल्ला मचाने के बावजूद कार में बैठे आतंकी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. जीतराम समेत बाकी लोग उस पर चिल्लाए कि तुम देखकर गाड़ी क्यों नहीं चला रहे हो. इस पर गाड़ी में बैठे ड्राइवर ने उसे धमकी दी कि पीछे हट जाओ वर्ना तुम्हें जान से मार देंगे. अब जीतराम को यकीन हो गया कि कार में बैठे लोगों ने भले सेना की वर्दी पहन रखी है, लेकिन वो सेना में नहीं हैं. उसने तुरंत अपनी रिवॉल्वर निकाल ली. जीतराम को रिवॉल्वर निकालता देख संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ का जेपी यादव गेट नंबर 11 की तरफ भागा. एक ऐसे काम के लिए जिसके शुक्रगुजार हमारे सांसद आज भी हैं.
13 दिसम्बर कायराना आतंकी हमले का दिन, 21 साल पहले संसद परिसर में गूंजी थी गोलियों की आवाज
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