पिछले साल तक जिन कॉलेजों में बीए, बीएससी, बीकॉम करने वालों की भीड़ रहती थी, सीटें फुल रहती थीं, बीए की कटऑफ भी 60 प्रतिशत से नीचे नहीं जाती थी वहां इस साल 80 प्रतिशत सीटें खाली पड़ी हुई हैं। हालात ये हैं कि सीयूईटी में बैठने वाले छात्र भी नहीं मिल रहे, जिन्हें कॉलेज बिना किसी मेरिट के ही दाखिला दे सकें। इसके लिए कॉलेज तैयार भी हैं।
यूजीसी ने इस साल से सभी केंद्रीय विवि में दाखिले के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी इंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) से दाखिलों की अनिवार्यता की थी। गढ़वाल विवि व इसके संबद्ध कॉलेजों पर ये नियम लागू हुआ तो इसका गंभीर परिणाम देखने को मिल रहा है। जिन अशासकीय डिग्री कॉलेजों में छात्रों को सबसे सस्ती शिक्षा मिलती है, जिनमें पिछले साल तक छात्रों की भीड़ इतनी होती थी कि 12वीं की मेरिट के बावजूद एडमिशन नहीं मिल पाता था। आज उन कॉलेजों में छात्रों की भारी किल्लत है।
प्रदेश के सबसे बड़े डीएवी कॉलेज में 3815 सीटों के मुकाबले महज 1743 दाखिले हुए हैं। एमपीजी कॉलेज मसूरी में 570 सीटों के सापेक्ष 17, एमकेपी कॉलेज देहरादून में 1380 सीटों के सापेक्ष महज 50 दाखिले हुए हैं। राठ महाविद्यालय पौड़ी और बीएसएम डिग्री कॉलेज रुड़की में तो छात्रों की भारी कमी है।
यहां पंजीकरण खुला है लेकिन दाखिले के लिए छात्र नहीं आ रहे हैं। सभी कॉलेजों के प्रशासक परेशान हैं कि दाखिले कैसे होंगे। आलम यह है कि खुद गढ़वाल विवि में भी शुरुआती रुझान काफी निराशाजनक हैं। विवि ने एसआरटी कैंपस टिहरी में बीएससी मैथ्स ग्रुप की पहली मेरिट जारी की है। यहां 225 सीटों के सापेक्ष 175 छात्र मेरिट में हैं। बीए में भी अमूमन यही हाल है। बाकी परिसरों के रिजल्ट आने बाकी हैं।