क्या किसी की खूबसूरती की तारीफ में उसे चांद कहना ठीक है? बता दे चंद्रयान-3 द्वारा भेजी गई पहली तस्वीरों को देखकर तो नहीं लगता। क्योंकि चांद पर हजारों गड्ढे हैं. हैरानी इस बात की है कि चांद की तो अपनी रोशनी भी नहीं है। वो भी सूरज से ली हुई उधार की रोशनी से चमकता है। पर चांद ऐसा क्यों है. चंद्रमा पर इतने गड्ढे क्यों हैं? कैसे बने?
पृथ्वी और चंद्रमा की कहानी लगभग एकसाथ शुरू होती है। ये बात है करीब 450 करोड़ साल पुरानी. तब से लेकर अब तक दोनों पर लगातार अंतरिक्ष से आने वाले पत्थर, उल्कापिंड गिरते रहते हैं। इनके गिरने से गड्ढे बनते हैं। इन्हें इम्पैक्ट क्रेटर भी कहते हैं। धरती पर अभी तक ऐसे 180 इम्पैक्ट क्रेटर खोजे गए हैं। कुछ ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से भी बने हैं। चंद्रमा पर करीब 14 लाख गड्ढे हैं।
इस समय कहां है चंद्रयान-3?
चंद्रयान-3 इस समय चांद के चारों तरफ 170 km x 4313 km वाली अंडाकार ऑर्बिट में घूम रहा है। ISRO वैज्ञानिक चंद्रयान-3 को लेकर तय तारीखों से आगे चल रहे हैं। वह अभी जिस कक्षा में है, उसे वह 9 अगस्त 2023 को हासिल करना था। लेकिन वह पहले ही इस ऑर्बिट में घूम रहा है। अब देखना ये है कि इसरो वैज्ञानिक इस अब कितनी दूरी वाले ऑर्बिट में डालते हैं।
9 अगस्त के बाद 14 तारीख की दोपहर 12.04 बजे इसका ऑर्बिट बदला जाएगा। फिर 16 अगस्त को यही काम किया जाएगा। हर बार इसकी दूरी को घटाया जाएगा। 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे। 18 और 20 अगस्त को डीऑर्बिटिंग होगी। यानी चांद के ऑर्बिट की दूरी को कम किया जाएगा. लैंडर मॉड्यूल 100 x 35 KM के ऑर्बिट में जाएगा। इसके बाद 23 की शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी।