एक नज़र इधर भी

साल 1893 में आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद ने दिया था प्रसिद्ध श‍िकागो भाषण

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11 सितंबर 1983 एक महत्वपूर्ण तारीख मन जाता है. 128 साल पहले आज ही के दिन महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमेरिका) में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिस पर हम भारतीयों को आज भी गर्व होता है. शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद जी दुनियाभर में छा गये थे.

क्या था विवेकानंदा जी का भाषण:

विवेकानंद जी ने श‍िकागो भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनो’ से की थी जिसके बाद सभागार में कई मिनटों तक हर ओर तालियां गूंजती रहीं. इसके बाद उन्होंने कहा, ‘आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है. मैं आप सभी को दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से शुक्रिया करता हूं. मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं.’

विवेकानंद जी ने कहा था कि हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही केवल विश्वास नहीं रखते हैं. बल्कि हम दुनिया के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. मैं गर्व करता हूं कि मैं जिस धर्म से हूं, उसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी. इसके बाद उन्होंने कुछ श्लोक की पंक्तियां भी सुनाई.

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।। 

इसका अर्थ है कि जैसे नदियां अलग अलग स्रोतों से निकलती हैं और आखिर में समुद्र में जाकर मिलती हैं. वैसे ही मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग रास्ते चुनता है.

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