आज बात करेंगे उत्तर प्रदेश की राजनीति की। यहां विधानसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम समय बचा है । ऐसे में राजनीतिक दलों के नेता ‘मुद्दे’ तलाशने में जुट गए हैं । यूपी में इन दिनों पंचायत चुनावों में भी पार्टियों के बीच जबरदस्त खींचतान मची हुई है।
ग्रामीण स्तर के माने जाने वाले चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बसपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जोर लगाए हुए है, क्योंकि यह पंचायत चुनाव अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के ‘सेमीफाइनल’ माने जा रहे हैं । लेकिन आज हम बात करेंगे यूपी में सबसे बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की ।
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अब एक नया ‘सियासी दांव’ खेला है । बात को आगे बढ़ाने से पहले हम आपको बता दें कि आज 9 अप्रैल है चार दिन बाद यानी 14 अप्रैल को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती है । ऐसे में अखिलेश ने यूपी में दलितों के वोटों का समीकरण साधने के लिए प्रदेश और देश वासियों से आह्वान किया है कि डॉ अंबेडकर की जयंती पर ‘दलित दीवाली’ मनाई जाए।
अखिलेश के इस नए सियासी दांवपेच के बाद यूपी में खास तौर पर बसपा खेमे में हलचल मचा दी है । सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा कि भाजपा के राजनीतिक अमावस्या के काल में वो संविधान खतरे में है, जिससे बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत को नई रोशनी दी थी, इसीलिए 14 अप्रैल को समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश, देश व विदेश में ‘दलित दीवाली’ मनाने का आह्वान करती है ।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कोरोना संकट भयावह होता जा रहा है, संक्रमित लोगों की संख्या और मौतों में रोजाना वृद्धि हो रही है। कोरोना पर नियंत्रण की पारदर्शी समुचित व्यवस्था के बजाय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा के स्टार प्रचारक बने अन्य राज्यों में भाषण देते घूम रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने कहा कि राज्य सरकार के बेपरवाह भाजपाई कोरोना पर नियंत्रण के झूठे दावे के साथ बस अपनी वाहवाही लूटने में लगे रहे। सपा के इस पहल के बाद भाजपा भी दलित वोटरों को अपने पाले में लाने केेे लिए एक्टिव हो गई है । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नेे भी अंबेडकर जयंती पर दलितों को रिझाने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी है ।
14 अप्रैल को केंद्र सरकार ने केंद्रीय दफ्तरों में किया छुट्टी का एलान–
अगले साल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा भी दलितों को साधने में जुट गई है। यूपी से लेकर दिल्ली तक भाजपा भी रणनीति बना रही है । इसी को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने एलान किया है कि बाबा साहेब अंबेडकर के जन्मदिन पर 14 अप्रैल को सभी केंद्रीय दफ्तरों में छुट्टी रहेगी।
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय की तरफ से आधिकारिक आदेश में इस फैसले की जानकारी दी गई। इसके साथ ही कहा गया कि डॉक्टर अंबेडकर की जयंती पर केंद्रीय सरकारी दफ्तरों के साथ ही देशभर में औद्योगिक प्रतिष्ठानों को भी बंद रखा जाएगा। वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के अंबेडकर जयंती को ‘दलित दिवाली’ के तौर पर मनाने को लेकर कुछ दलित संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है ।
महासभा के अध्यक्ष और योगी सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री ‘लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर साहेब की जयंती को अमेरिका जैसा देश समता दिवस के रूप में मना रहा है, जबकि समाजवादी पार्टी दलित दिवाली के रूप में मनाने की बात कर रही है’। लालजी प्रसाद निर्मल ने कहा कि अखिलेश यादव ने बाबा साहेब के कद को घटाने की कोशिश है। यहां आपको बता दें कि अभी कुछ वर्ष पहले तक ‘बसपा प्रमुख मायावती अंबेडकर जयंती को पूरे प्रदेश भर में खूब धूमधाम के साथ मनाती आईं हैं ।
इसी बहाने बसपा अपने दलित वोट को भी मजबूत करती थी’ । लेकिन हाल के वर्षों में बसपा से दलित वोटर दूर होता चला गया । सपा प्रमुख अखिलेश के दलित दीवाली के सियासी दांव पर फिलहाल बसपा प्रमुख मायावती का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है ।
लेकिन इतना जरूर है समाजवादी पार्टी ने बसपा की मुश्किलें जरूर बढ़ा दी है । माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव ने यह दांव चला है। ऐसे में देखना होगा कि सूबे का दलित मतदाता क्या मायावती का साथ छोड़कर अखिलेश यादव के साथ आएगा?
बता दें कि वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था । लोकसभा चुनाव परिणामों के कुछ समय बाद ही बसपा ने सपा से अलग होने का एलान कर दिया था ।