होली पर विशेष: फागुन माह की पूर्णिमा पर मनाया जाता है होली का पर्व

फागुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन का त्योहार मनाया जाता है. शास्त्रों में फाल्गुन पूर्णिमा का महत्व काफी ज्यादा होता है. माना जाता है कि होलिका की अग्नि की पूजा करने से कई तरह के लाभ मिलते हैं. होलिका दहन आज किया जाएगा. इस साल होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात में 9 बजकर 16 मिनट से लेकर 10 बजकर 16 मिनट तक ही रहेगा. ऐसे में पूजा के लिए आपको सिर्फ 1 घंटे 10 मिनट का ही समय मिलेगा. इसके अगले दिन शुक्रवार, 18 मार्च को रंगवाली होली खेली जाएगी. होलिका दहन के दिन सबसे पहले ये बात जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि दहन को शुभ मुहूर्त में ही करें. भद्रा मुख और राहुकाल के दौरान होलिका दहन शुभ नहीं माना जाता है. होली के दिन भोजन करते समय मुंह दक्षिण दिशा की तरफ ही रखें. दहन के समय महिलाओं को सिर को ढंक लेना चाहिए। सिर पर कोई कपड़ा रखकर ही पूजा करें.

इस बार होली पर कई शुभ संयोग बनना अत्यंत लाभकारी

बता दें कि इस बार होली पर करीब आधा दर्जन शुभ योग बन रहे हैं. इसमें वृद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और ध्रुव योग शामिल हैं. इसके अलावा होली पर बुध-गुरु आदित्‍य योग भी बन रहा है. ज्‍योतिष के मुताबिक वृद्धि योग में किए गए काम लाभ देते हैं. खासतौर पर व्‍यापार के लिए यह योग बहुत लाभदायी माना गया है. सर्वार्थ सिद्धि योग में किए गए अच्छे कार्य खूब पुण्‍य देते हैं. ध्रुव योग का बनना कुंडली में चंद्रमा को मजबूत करने का मौका देता है. वहीं बुध-गुरु आदित्य योग में की गई होली की पूजा घर में सुख-शांति लाती है. ऐसे में रंग-गुलाल खुशहाली और समृद्धि बनकर बरसेंगे. ब्रज की होली पूरे दुनिया भर में मशहूर है. मथुरा, वृंदावन, गोकुल और महावन में देश-विदेश के हजारों श्रद्धालु होली खेलने आते हैं.

होली मनाने को लेकर देश में सदियों से चली आ रही पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, हिरण्यकशिपु का ज्येष्ठ पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था. पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा. दैत्य पुत्र होने के बावजूद नारद मुनि की शिक्षा के परिणामस्वरूप प्रह्लाद महान नारायण भक्त बना. असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परन्तु भगवान नारायण स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ. असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी. होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई. दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका जल गई. इस प्रकार हिन्दुओं के कई अन्य पर्वों की भांति होलिका-दहन भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है‌.

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