बीती कल देररात शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का निधन हो गया। बता दे कि उन्होंने मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में अंतिम सांस ली।
इसी के साथ केंद्र सरकार ने बादल के निधन पर दो दिन (26 और 27 अप्रैल) के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और सरकारी मनोरंजन के कार्यक्रम नहीं होंगे।
आपको बता दे कि प्रकाश सिंह बादल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चंडीगढ़ पहुंचकर अंतिम श्रद्धांजलि दी। बादल पंजाब की सियासत के बड़े चेहरों में से एक थे।
उनके निधन के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर पंजाब की सियासत पर इसका कितना असर पड़ेगा?
हालांकि अगर बात कि जाए तो इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की।
उन्होंने कहा, ‘प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब में सियासत की नई बयार लाई थी। एक बार अकाली दल की कमान संभाली तो उन्होंने पार्टी के भीतर किसी को सिर उठाने नहीं दिया।’
बता दे कि प्रमोद कहते हैं, ’शिअद छोड़कर अगर किसी ने अलग अकाली दल बनाया तो वह सफल नहीं हो पाया। कई नेताओं ने पार्टी छोड़कर अकाली दल का गठन करना चाहा लेकिन सफल नहीं हो पाए।
उनकी राजनीतिक सूझबूझ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पंजाब में हिंदू-सिख भाईचारे की नई नींव रखी और तनाव भी खत्म कर दिया।’
हालांकि प्रमोद आगे कहते हैं, ‘बादल के चाहने वाले हर राजनीतिक दल में मिलेंगे। भाजपा से राजनीतिक गठबंधन टूटा लेकिन रिश्ते बरकरार रहे। अब अकाली दल में इसकी कमी जरूर खलेगी।
सुखबीर सिंह बादल के हाथ में जब से पार्टी की कमान आई है, तब से अकाली दल का परफॉरमेंस लगातार गिर रहा है।’
प्रमोद के अनुसार, ‘अकाली दल के कमजोर होने का फायदा भाजपा को मिल सकता है। आने वाले दिनों में भाजपा इसे भुनाने की भी कोशिश कर सकती है।
जैसे भाजपा ने यूपी में मुलायम सिंह यादव को एक विशेष पार्टी के छवि से बाहर निकालकर समाजवादी नेता के तौर पर पेश किया, उसी तरह प्रकाश सिंह बादल को भी पंजाब में भाईचारे के मिसाल की तौर पर पेश कर सकती है।’