मकर संक्रांति विशेष: मांगलिक शुभ कार्य और पतंगोत्सव के साथ मौसम परिवर्तन की भी शुरुआत करता है ये पर्व

आज एक ऐसा पवित्र पर्व है जिसको लेकर हमारे देश में प्राचीन समय से कई परंपराएं चली आ रही हैं. इस दिन मांगलिक कार्यों की शुरुआत के साथ मौसम में भी परिवर्तन होना शुरू हो जाता है. इसके साथ यह पर्व स्नान, दान-पुण्य और पतंग उड़ाने की परंपरा के लिए भी जाना जाता है. आज 14 जनवरी है इस दिन हिंदुओं का त्योहार मकर संक्रांति मनाया जाता है.

इस त्योहार को खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है. वहीं दक्षिण के राज्यों में पोंगल पर्व भी मनाया जाता है. इस बार मकर संक्रांति को लेकर ज्योतिषियों की अलग-अलग राय है. कोई 14 जनवरी तो कोई 15 जनवरी को इस पर्व को मनाना शुभ मान रहा है. पौष माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. मकर संक्रांति की तिथि सूर्य देव की चाल तय करती है.

जब सूर्य धनु से निकलकर शनि देव की राशि मकर में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति पर्व का विशेष महत्व माना जाता है. इस दिन किया गया गंगा स्नान, खिचड़ी, गर्म वस्त्र, तिल, चावल, घी, कंबल, गुड़ के दान और भगवान के दर्शन से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. यह दिन बड़ा पावन माना जाता है क्योंकि इस दिन से खरमास का अंत होता है, जिससे मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. इस दिन गंगा में स्नान एवं दान पुण्य करना उत्तम माना जाता है. मकर संक्रांति के दिन से मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है, सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है. इसे शीत ऋतु के समापन और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है.

इस बार पुण्यकाल 14 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से शुरू होकर शाम 05 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. तथा महापुण्य काल सुबह 09 बजे से शुरू होकर 10:30 तक रहेगा. मकर संक्रांति पर पुण्य काल 14 जनवरी की रात 08:49 से प्रारंभ होकर 15 जनवरी के दिन दोपहर 12:49 तक समाप्त हो जाएगा.

मकर संक्रांति के दिन पतंग उत्सव को भी त्योहार के रूप में मनाया जाता है

मकर संक्रांति का पर्व केवल दान-पुण्य के लिए नहीं जाना जाता बल्कि इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा भी चली आ रही है. पतंग उड़ाना इस त्योहार की एक तरह से रस्म है. बच्चे हों या युवा हर कोई पतंग उड़ाने के लिए इस दिन बेसब्री से इंतजार करते हैं. सुबह से ही आसमान में हर तरह रंग-बिरंगी पतंगें छा जाती हैं. कई जगहों पर तो पतंगोत्सव का भव्य आयोजन भी किया जाता है और प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं.

पतंग उड़ाने की परंपरा भगवान श्रीराम ने की थी. पुराणों में उल्लेख है कि मकर संक्रांति पर पहली बार भगवान श्रीराम ने पतंग उड़ाई थी और ये पतंग उड़ते हुए स्वर्गलोक में इंद्र के पास जा पहुंची. इसका उल्लेख तमिल की तन्दनानरामायण में भी मिलता है. भगवान ने इस पतंग पर संदेश लिख कर इंद्रदेव को दिया था. मान्यता है कि संक्रांति पर अपनी मनोकामना यदि पतंग पर लिख कर उड़ाया जाए तो वह ईश्वर तक पहुंचती है और आस पूरी होती है. पतंग उड़ाने की मान्यता का मकर संक्रांति के साथ संबंध है. इसके पीछे अच्छी सेहत का राज है. दरअसल मंकर संक्रांति पर सूरज से मिलने वाली धूप से स्वास्थ्य लाभ होता है. वैज्ञानिक दृष्टि से इस दिन सूर्य की किरण शरीर के लिए अमृत समान है, जो विभिन्न रोगों को दूर करने में सहायक होती है.

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