सनातन धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व की 22 मार्च , बुधवार से शुरुआत हो गई है. नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा- अर्चना की जाती है. नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा का विधान है. भक्त नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास भी रखते हैं.
मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की विधिवत पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. जानें मां शैलपुत्री की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त,
इसी दिन अखंड ज्योत जलाया जाता है तथा माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. नवरात्र का पहला दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री को समर्पित है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के पुत्री के रूप में हुआ था इसीलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. शैलपुत्री माता पार्वती तथा उमा के नाम से भी जानी जाती हैं. माता शैलपुत्री बेहद शुभ मानी जाती हैं जिनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल मौजूद रहता है.
माता शैलपुत्री वृषभ पर विराजमान रहती हैं. संपूर्ण हिमालय पर्वत माता शैलपुत्री को समर्पित है. कहा जाता है कि माता शैलपुत्री अत्यंत सौम्य स्वभाव की हैं और अपने भक्तों को वरदान देती हैं.
माता शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए विधिवत तरीके से पूजा करें तथा आरती, मंत्र, कथा और भोग के साथ उनकी आराधना करें.
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार. करें देवता जय जयकार.
शिव शंकर की प्रिय भवानी. तेरी महिमा किसी ने ना जानी.
पार्वती तू उमा कहलावे. जो तुझे सिमरे सो सुख पावे.
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू. दया करे धनवान करे तू.
सोमवार को शिव संग प्यारी. आरती तेरी जिसने उतारी.
उसकी सगरी आस पुजा दो. सगरे दुख तकलीफ मिला दो.
घी का सुंदर दीप जला के. गोला गरी का भोग लगा के.
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं. प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं.
जय गिरिराज किशोरी अंबे. शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे.
मनोकामना पूर्ण कर दो. भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो.
मां शैलपुत्री मंत्र
वन्दे वाच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्.
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्..
मां शैलपुत्री की कथा
मां शैलपुत्री की यह कथा बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध है, जानकार बताते हैं कि बहुत समय पहले प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था. लेकिन प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को इस यज्ञ के बारे में कुछ नहीं बताया और ना ही आमंत्रित किया. जब यह बात देवी सती ने सुनी तब उन्हें इस यज्ञ में जाने का बहुत मन हुआ जिसके बाद वह भगवान शिव से आग्रह करने लगीं.
भगवान शिव के कहने पर भी नहीं रुकीं देवी सती
भगवान शिव ने कहा की अगर प्रजापति दक्ष ने हमें इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया है तो इसके पीछे कोई ना कोई बड़ी वजह जरूर होगी. शायद वह हमसे किसी बात पर नाराज हैं इसीलिए उन्होंने हमें इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया है. यह बात सुनकर देवी सती भगवान शिव से आग्रह करने लगी कि वह उस यज्ञ में शामिल होना चाहती हैं. भगवान शिव ने उन्हें मना किया लेकिन देवी सती की इच्छा को देखकर भगवान शिव मान गए और देवी सती को यज्ञ में शामिल होने की अनुमति दे दिए.
योगाग्नि में भस्म हो गई थीं देवी सती
जब देवी सती उस यज्ञ में पहुंची तब उन्होंने देखा कि यज्ञ में मौजूद सभी परिवारजन उनसे प्रेम से बात नहीं कर रहे थे. यह सब देखकर देवी सती को बहुत बुरा लगा और वह भगवान शिव की बात ना मन कर पछताने लगीं. अपने द्वारा अपने पति का किया हुआ अपमान उन्हें सहन नहीं हुआ और वह योगाग्नि में भस्म हो गईं. जब भगवान शंकर को इस बात का पता चला तब उन्होंने इस यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया.
अगले जन्म में देवी सती शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी. इसलिए उनका नाम शैलपुत्री रखा गया.
मां शैलपुत्री का भोग
कहा जाता है कि मां शैलपुत्री को घी अर्पित करना चाहिए क्योंकि ऐसा करना बेहद मंगलकारी होता है. जो भक्त नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करता है उसे आरोग्य जीवन प्राप्त होता है.