एक नज़र इधर भी

जानिए खूबसूरत ‘मोनालिसा’ के बारे में, जिसकी दा विंची ने बना डाली विश्वप्रसिद्ध पेंटिंग

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इटलीवासी, महान चित्रकार, आविष्कारक, संगीतज्ञ, मूर्तिकार, वैज्ञानिक, निरीक्षक, शरीर रचना वैज्ञानिक, भवन डिजाईन विशेषज्ञ, डिज़ाइनर और नगर नियोजक थे। अपने समय में उनका नाम बहुत प्रसिद्ध था और लोग उनकी बहुमुखी प्रतिभा का लोहा मानते थे। उनकी इसी बहुमुखी प्रतिभा के कारण उन्हें ‘यूनिवर्सल मैन’ की उपाधि दी गयी थी।

जीवन परिचय
लिओनार्दो दा विंची का जन्म 15 अप्रैल 1452 को इटली के प्रसिद्ध शहर फ्लोरेंस के निकट विंची में हुआ था। उनके पिता एक प्रसिद्ध वकील थे और माँ विंची की ही किसी सराय में कभी नौकरानी रही थी लेकिन उसके इतिहास के बारे में लोगों को ज्यादा पता नही है।

ऐसा माना जाता है कि लिओनार्दो दा विंची की माता ने वकील साहब के अवैध पुत्र को जन्म दिया था। अपने पुत्र को अपने उसके पिता को सुपुर्द कर उस महिला ने किसी भवन निर्माता से विवाह कर लिया था।

बचपन
लिओनार्दो दा विंची का बचपन अपने दादा के घर में ही बीता था। सन 1469 में लिओनार्दो दा विंची के पिता उनके साथ फ्लोरेंस आ गये, जहाँ पर उनकी चाची ने उनकी कई वर्षो तक देखभाल की थी। फ्लोरेंस में ही उनकी शिक्षा दीक्षा पूर्ण हुयी थी। स्कूल से ही लिओनार्दो दा विंची की प्रतिभा सामने आने लगी थी जबकि गणित की मुश्किल से मुश्किल समस्याओं का समाधान वह चुटकियों में ही कर लेते थे।

सन 1482 इस्वी तक उन्होंने विविध विषयों में शिक्षा प्राप्त कर ली थी। सन 1466 में जब वो केवल 14 वर्ष के थे तभी अचानक उनके मन में मूर्तिया बनाने का शौक उभरा था। इस आयु में उन्होंने ऐसी मूर्तिया बनाई जिनकी सभी ने प्रशंशा की थी। जब उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी कर ली थी तब उनके पास आय का कोई साधन नहीं था।

सन 1482 में ही उन्होंने मिलान के ड्यूक को अपनी व्यावसायिक सेवाएँ प्रदान करने हेतु पत्र लिखा। ड्यूक ने लिओनार्दो दा विंची को अपनी सेना में इंजिनियर के पद पर रख लिया। वहाँ पर लिओनार्दो दा विंची ने ऐसे हथियारों के डिजाईन तैयार किये जो युद्ध में काफी उपयोगी सिद्ध हुए थे।

शरीर रचना विज्ञान में विशेष रूचि
मिलान में रहते हुए उन्होंने अनेक सड़कों, भवनों में गिरिजाघरों और नहरों के डिजाईन तैयार किये थे। जब सन 1499 में लिओनार्दो दा विंची पेरिस आये तो उस समय तुर्की के साथ युद्ध चल रहा था। वहाँ उन्होंने युद्ध सम्बधी अविष्कार प्रस्तुत किये थे लेकिन ड्यूक को शायद उनमे से कोई पसंद नहीं आयी थी।

अंततः ड्यूक के लिए उन्होंने 1495 में अपनी “The Last Supper” पेंटिंग बनाना आरम्भ किया जो 1497 में पूरी हुयी। मिलान में रहते हुए उनकी रूचि शरीर रचना विज्ञान (Anatomy) में जाग उठी थी जिसके कारण वो उस जमाने के मशहूर डॉक्टरों के पास गये ताकि मुर्दों की चीर फाड़ अपनी आँखों से देख सके। इसी कारण उन्होंने मानव शरीर के अंग अंग का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किये थे।

जब ड्यूक को फ़्रांस के बादशाह ने पकड़ लिया और कैद में डाल दिया तब उनका कोई अभिभावक नही रहा। इस संकटकाल में वो वेनिस जाकर युद्ध सम्बधी अविष्कारों को वहाँ के अधिकारियों के सम्मुख पेश किया जिनमें गोताखोरों के लिए एक ख़ास किस्म की पोशाक और एक तरह की पनडुब्बी थी। कुछ अरसे के लिए लिओनार्दो दा विंची सेसारे बोर्गिया में यहा नक्काशी की नौकरी भी करते रहे। सन 1500 में 50 वर्ष की आयु में लिओनार्दो दा विंची वापस अपनी मातृभूमि फ्लोरेंस लौट आये और छ सालों तक वही रहे।

विश्व प्रसिद्ध ‘मोनालिसा’ तस्वीर
फ्लोरेंस में रहते हुए उन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग “मोनालिसा” बनायी थी। उस समय मोनालिसा की आयु 24 वर्ष थी। वो प्रतिदिन दोपहर के बाद लिओनार्दो दा विंची के स्टूडियो में आती थी। इस प्रसिद्ध पेंटिंग को बनाने में उनको पूरे तीन वर्ष लगे थे। पेंटिंग पूरी लिओनार्दो दा विंची अपनी कृति की सुन्दरता को देखकर स्वयं मंत्रमुग्ध हो गये थे।

इस पेंटिंग में मोनालिसा के चेहरे में एक अदभुद मुसकान झलक रही थी और आँखों में विचित्र नशीलापन दीखता था। इस पेंटिंग को उन्होंने मोनालिसा को नहीं दिया, आज भी ये पेंटिंग फ़्रांस के एक संग्रहालय में टंगी हुयी है। इसके बाद भी लिओनार्दो दा विंची ने कई पेंटिंग बनाई थी।

अन्य रचनाएँ
लिओनार्दो दा विंची ने एक सात हजार पृष्ठों की एक पुस्तक लिखी थी जिसमें उन्होंने धरती की सुन्दरता, उसके सुंदर दृश्य, शरीर विज्ञान से संबंधित चित्र, युद्ध में काम आने वाली मशीनें, लड़ाकू विमान आदि का विवरण था। लिओनार्दो दा विंची ने कितनी ही छोटी मोटी चीजें इजाद कीं, जो आज भी थोड़ी बहुत हेराफेरी के साथ उसी शक्ल में इस्तेमाल हो रही हैं।

उनमें कुछ फर्क आ गया है तो यही कि लकड़ी की जगह स्टील का इस्तेमाल हो रहा है किन्तु मूल में काम कर रहे नियम सर्वप्रथम लिओनार्दो दा विंची की सूक्ष्म बुद्धि से ही विकसित किये थे

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