बच्चे जब एकदूसरे की कमीज का पिछला हिस्सा पकड़कर छुक-छुक करते हुए दौड़ लगाते हैं तो अन्यास ही ‘आशीर्वाद’ फिल्म में दादा मुनी अशोक कुमार पर फिल्माया गया गीत ‘रेलगाड़ी’ की याद ताजा हो उठती है. जैसे ही यह गीत जहन में आता है तो शुरूआत इन लाइनों से होती है- छुक छुक, छुक छुक, बीच वाले स्टेशन बोलें, रुक रुक, रुक रुक.
लेकिन गीत इन पंक्तियों से कहीं पहले शुरू होता है. जब अशोक कुमार बच्चों को खेल के लिए इकट्ठा करते हुए आवाज लगाते हैं कि ‘आओ बच्चों रेल दिखायें, छुक छुक करती रेल चलायें’, दादा मुनी कहते हैं- मुन्नी तुम हो इंजन. ढब्बू तुम हो कोयले का डिब्बा. चुन्नू मुन्नू, लीला शीला, मोहन सोहन, जाधव माधव सब पैसेन्जर, सब पैसेन्जर. एक, दो – रेलगाड़ी पी…
दरअसल, ये लाइनें भी इसी गीत के बोल हैं जिन्हें गायक (अशोक कुमार ने गाया है) ने अलग ढंग से प्रस्तुत किया. पूरा गीत इस प्रकार है-
आओ बच्चों खेल दिखाएं
छुक-छुक करती रेल चलाएं
सिटी लेकर सीट पे बैठो,
एक-दूजे की पीठ पे बैठो
आगे-पीछे, पीछे-आगे,
लाईन से लेकिन कोई न भागे
सारी-सीधी लाईन में चलना,
आंखें दोनों मीचे रखना
बंद आंखों से देखा जाए,
आंख खुले तो कुछ न पाएं
आओ बच्चों रेल चलाएं
सुनो रे बच्चों टिकट कटाओ
तुम लोग नहीं आओगे
तो रेल गाड़ी छूट जाएगी
आओ सब लाईन में खड़े हो जाओ
मुन्नी, तुम हो ईंजन,
डब्बू तुम हो कोयले का डिब्बा
चुन्नू, मुन्नू, लीला, शीला, मोहन, सोहन, जादव, माधव
सब पैसेंजर, सब पैसेंजर
रेलगाड़ी, ए रेलगाड़ी
रेलगाड़ी, रेलगाड़ी
छुक छुक छुक छुक
बीच वाले स्टेशन बोले
रूक रूक रूक रूक
तड़क-भड़क, लोहे की सड़क
धड़क-धड़क, लोहे की सड़क
यहां से वहां, वहां से यहां
यहां से वहां, वहां से वहां
छुक छुक छुक छुक छुक
फुलाए छाती, पार कर जाती
बालू रेत, आलू के खेत
बाजरा धान, बुड्ढा किसान
हरा मैदान, मंदिर, मकान, चाय की दुकान
पुल-पगडंडी, किले पे झंडी
पानी के कुंड, पंछी के झुंड
झोंपड़ी, झाड़ी, खेती-बाड़ी
बादल, धुआं, मोट-कुआं
कुएं के पीछे, बाग़-बगीचे
धोबी का घाट, मंगल की हाट
गांव में मेला, भीड़ झमेला
टूटी दीवार, टट्टू सवार
रेलगाड़ी, रेलगाड़ी
छुक छुक छुक छुक
बीच वाले स्टेशन बोले
रूक रूक रूक रूक
धरमपुर-ब्रह्मपुर, ब्रह्मपुर-धरमपुर
मैंगलौर-बैंगलोर, बैंगलोर-मैंगलौर
मांडवा-खांडवा, खांडवा-मांडवा
रायपुर-जयपुर, जयपुर-रायपुर
तालेगांव-मालेगांव, मालेगांव- तालेगांव
नेल्लूर-वेल्लूर, वेल्लूर-नेल्लूर
शोलापुर-कोल्हापुर, कोल्हापुर-शोलापुर
कुक्कल-डिंडिगल, डिंडिगल-कुक्कल
मछलीपट्नम-भीमनीपटनम, भीमनीपटनम-मछलीपट्नम
ओंगोल-नारगोल, नारगोल-ओंगोल
कोरेगांव-गोरेगांव, गोरेगांव-कोरेगांव
अहमदाबाद-महमदाबाद, महमदाबाद-अहमदाबाद
शोतपुर-जोधपुर, जोधपुर-शोतपुर
छुक छुक छुक छुक छुक
बीच वाले स्टेशन बोले
रूक रूक रूक रूक
तड़क-भड़क, लोहे की सड़क
धड़क-धड़क, लोहे की सड़क
यहां से वहां, वहां से यहां
यहां से वहां, वहां से वहां
छुक छुक छुक छुक छुक
छुक छुक छुक छुक छुक
इस गीत को पढ़ते हुए नायक और गायक का चेहरा तो आंखों के सामने उभर आता है लेकिन इसके लेखक कौन हैं, बहुत कम लोग ही इस बारे में जानते होंगे. यहां हम इस कालजयी बाल गीत के लेखक के बारे में चर्चा कर रहे हैं. इस बालगीत को लिखा है हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने.
हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे कुशल अभिनेता, गायक, चित्रकार, संगीतकार, रंगकर्मी, राजनेता और गीतकार थे. वे महान कवित्री और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरोजिनी नायडू के छोटे भाई थे.
हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय अक्सर ऑल इंडिया रेडियो यानी आकाशवाणी पर अपनी कविता ‘रेलगाड़ी’ का पाठ करते थे. रेडियो पर यह गीत इतना मशहूर था कि इससे प्रभावित होकर इसे आशीर्वाद फिल्म में शामिल किया गया. नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर खुद उनकी रचनाओं के बड़े प्रशंसक थे.
हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने कई फिल्मों में यादगार अभिनय किया. 1972 में आई राजेश खन्ना की मशहूर फिल्म ‘बावर्ची’ उन्होंने दादुजी की भूमिका निभाई थी. उन्होंने 30 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया. इनमें ‘साहिब बीबी और गुलाम’, ‘तेरे घर के सामने’, ‘चला मुरारी हीरो बनने’, ‘अंखियों के झरोखों से’, ‘चलती का नाम जिंदगी’ आदि शामिल हैं.
‘मिट्टी का प्याला’ और ‘आग’ के लेखक
हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने तमाम कहानी और गीत लिखे. इनमें ‘मिट्टी का प्याला’ और ‘आग’ उनकी बेहतरीन कविताएं हैं. इसमें कवि और मिट्टी के प्याले के बीच बहुत ही मार्मिक संवाद है. इसमें मिट्टी से प्याले के गढ़ने का बड़ा ही सुंदर वर्णन है.
हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय की ‘आग’ एक दुखद कविता है. इस कविता में नवजात शिशु और आग की लपटों के बीच संवाद है.
सरोजिनी नायडू के छोटे भाई और बावर्ची के ‘खडूस दादुजी’, जिन्होंने रचा कालजयी बाल गीत ‘रेलगाड़ी’
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