आतंकी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स के चीफ परमजीत सिंह पंजवड़ की लाहौर में हत्या कर दी गई है। बता दे कि उसे जौहर कस्बे की सनफ्लावर सोसाइटी में घुसकर गोलियां मारी गईं।
भारत में आतंकवाद का पर्याय बना पंजवड़ इन दिनों टाउनशिप क्षेत्र, अकबर चौक, नेसपैक कॉलोनी, लाहौर में रह रहा था।
इसी के साथ आपको बता दे कि पंजवड़ 1990 से ही पाकिस्तान में शरण लेकर बैठा था और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का दाहिना हाथ माना जाता था।
पंजवड़ ने पाकिस्तान में अपना नाम मलिक सरदार सिंह रखा हुआ था। शनिवार सुबह 6 बजे बाइक पर आए दो लोगों ने उस पर हमला किया और फरार हो गए।
हालांकि परमजीत सिंह पंजवड़ पुत्र कश्मीरा सिंह, गांव पंजवड़, जिला अमृतसर का रहने वाला था और पंजाब से फरार होकर 1990 में पाकिस्तान चला गया था, जहां पर उसने खालिस्तान कमांडो फोर्स के चीफ की कुर्सी संभाल रखी थी।
बता दे कि मनबीर सिंह चहेड़ू के नेतृत्व में अगस्त 1986 में पंथक कमेटी और दमदमी टकसाल के सहयोग से खालिस्तान कमांडो फोर्स (केसीएफ) का गठन किया गया था और वर्तमान में खालिस्तान कमांडो फोर्स की पहचान केसीएफ-पंजवड़ के रूप में की जाती है।
इसी के साथ अगस्त 1986 में मनबीर सिंह चहेड़ू को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद सुखदेव सिंह उर्फ सुखा सिपाही ने प्रमुख का पदभार संभाला।
बाद में इस आतंकी संगठन की कमान पाकिस्तान में शरण लिए परमजीत सिंह पंजवड़ को सौंपी गई। पंजवड़ ने ही इस्लामी समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के साथ संबंध बनाकर अपने संगठन को काफी मजबूत किया।
बता दे कि पंजाब में 57 वर्षीय परमजीत पंजवड़ पर देशद्रोह, हत्या, साजिश, हथियारों की तस्करी व आतंकवाद को पुनर्जीवित करने के मामले दर्ज हैं।
पंजवड़ पूर्व सेना प्रमुख जनरल एएस वैद्य की हत्या और लुधियाना में देश की सबसे बड़ी बैंक डकैती के मामले में भी वांछित रह चुका है।
इसी के साथ ही खालिस्तान कमांडो फोर्स में शामिल होने से पहले 1986 उसने केंद्रीय सहकारी बैंक में काम किया। 1986 में वह केसीएफ में शामिल हो गया।
उसके चचेरे भाई लाभ सिंह का उस पर बड़ा प्रभाव था। 1990 के दशक में लाभ सिंह के खात्मे के बाद केसीएफ का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद पंजवड़ पाकिस्तान भाग गया।
हालांकि पंजवड़ ने सीमा पार से हेरोइन की तस्करी के माध्यम से धन जुटाकर केसीएफ को जीवित रखा हुआ था। भोला और परगट सिंह नारली जैसे पंजाब के बड़े तस्करों की मदद से फंड लेकर आतंकवाद को जिंदा करने व हथियारों पर खर्च किया है।
भारत की खुफिया एजेंसी के मुताबिक, उसकी पत्नी और बच्चों ने खुद को जर्मनी में स्थानांतरित कर लिया था।
परमजीत पंजवड़ के खिलाफ 1989 से 1990 तक दस प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिनमें हत्या के सात मामले और टाडा के तहत दो मामले शामिल हैं।