उत्‍तराखंड

पुरोहितों का बढ़ा दबाव: पीएम मोदी के कृषि कानून वापसी के बाद धामी भी देवस्थानम बोर्ड का बंद करना चाहते हैं चैप्टर

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देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अगर किसी ‘ट्रेंड’ की शुरुआत हो जाती है तो वह कुछ दिनों तक लोगों के दिमाग में छाई रहती है. इस ट्रेंड से लोग आसानी से जल्दी निकल नहीं पाते हैं. पिछले 24 घंटे से देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीनों कृषि कानून को वापस लिए जाने के बाद देशवासियों के लिए एक नई राह भी खुल गई है.

प्रधानमंत्री के इस फैसले के बाद लोगों ने कई कानून और बोर्ड को भंग करने की आवाज बुलंद कर दी है. शुक्रवार को पीएम मोदी के कृषि कानून को वापस करने के एलान के बाद दो सालों से नाराज चल रहे तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज ‘देवस्थानम बोर्ड’ को भंग करने के लिए और मुखर हो गए हैं. एक बार फिर केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के नाराज तीर्थ पुरोहित धामी सरकार पर दबाव बनाने के लिए जल्द ही बैठक करने जा रहे हैं.

सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा हुआ है. ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी नहीं चाहते हैं. मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही पुष्कर सिंह धामी ने देवस्थानम बोर्ड को लेकर नरम रवैया अपनाया हुआ है. वे कई बार तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज के साथ बैठक कर उनके साथ अन्याय न होने की बात दोहराते रहे हैं. तीर्थ-पुरोहितों की समस्याओं के निस्तारण को पुष्कर धामी सरकार ने वरिष्ठ भाजपा नेता मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में समिति गठित की है. जो प्रारंभिक रिपोर्ट सरकार को भी सौंप चुकी है। सरकार ने समिति का विस्तार किया है.

इसे सीएम की डैमेज कंट्रोल की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. इसके अलावा सीएम धामी भी लगातार यह कहते आ रहे हैं कि जनता के हित में जो होगा, सरकार वहीं फैसला लेगी. हालांकि अभी तक बोर्ड के वजूद को लेकर सरकार की तरफ से तस्वीर साफ न होने से तीर्थ-पुरोहित नाराज चल रहे हैं. 5 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले केदारनाथ पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक व कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत को उनके आक्रोश का सामना करना पड़ा था. इसे देखते हुए सरकार डैमेज कंट्रोल में जुटी है. बता दें कि बोर्ड के गठन से पहले श्री बदरी-केदारनाथ और गंगोत्री-यमनोत्री मंदिर समिति चारधाम के संचालन की व्यवस्था करती थी. बोर्ड के गठन के बाद उनसे यह अधिकार छिन गया और वे लगातार इसका विरोध करते आ रहे हैं.

शंभू नाथ गौतम

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