सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादास्पद आदेश पर सख्त प्रतिक्रिया दी है, जिसमें एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न को बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी। इस आदेश में कहा गया था कि आरोपी द्वारा लड़की की छाती पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को ‘पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय’ करार देते हुए कहा कि यह न्यायिक संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और ए.जी. मसीह की पीठ ने इस आदेश को तुरंत प्रभाव से स्थगित कर दिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से संबंधित न्यायाधीश के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
यह मामला तब सामने आया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 वर्षीय बच्ची के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी को बलात्कार के प्रयास के आरोप से मुक्त कर दिया था। इस निर्णय के खिलाफ देशभर में कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने तीव्र विरोध जताया। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले में केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया है।
यह निर्णय न्यायपालिका में लैंगिक संवेदनशीलता की आवश्यकता को रेखांकित करता है और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायिक प्रणाली की जिम्मेदारी को उजागर करता है।