‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का यही निशान होगा’ । जी हां आज हम बात करेंगे उन शहीदों की जिन्होंने अपने देश को आजाद कराने में प्राणों को न्योछावर कर दिया। आज 23 मार्च है ।
इस तारीख को हर वर्ष शहीद दिवस के रूप में याद किया जाता है । इस मौके पर पूरा देश अपने वीर सपूतों को याद करते हुए श्रद्धांजलि दे रहा है ।
आज शहीद दिवस पर बात होगी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की। इन तीनों क्रांतिकारियों ने अपने आखिरी वक्त में भी मौत का कोई खौफ नहीं दिखाई दिया । बल्कि सीना चौड़ा करके फांसी के फंदे पर झूल गए । कहा जाता है कि जिस दिन उन्हें फांसी दी गई थी उस दिन वो तीनों मुस्कुराते हुए आगे बढ़े और एक-दूसरे को गले से लगाया था।
इन तीनों वीर सपूतों ने भारत को आजाद कराने में अपने प्राणों की आहुति दे दी । देशवासियों को आज की तारीख कभी नहीं भूलती है ।
आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार से मुकाबला करने वाले शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च की रात साल 1931 में फांसी दी गई थी। उन्हें लाहौर षड्यंत्र के आरोप में फांसी पर लटकाया गया था। यहां हम आपको बता दें कि इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दिए जाने की तारीख 24 मार्च 1931 तय की थी, लेकिन उन्हें एक दिन पहले की फांसी दे दी गई थी। दरअसल, इनको फांसी दिए जाने की खबर से देशभर में लोग भड़के हुए थे। वो उन्हें देखना चाहते थे।
फांसी को लेकर विरोध प्रदर्शन भी चल रहे थे। अंग्रेज सरकार इसी बात से डर गई थी। उन्हें लगा कि माहौल बिगड़ सकता है, इसलिए उन्होंने फांसी का दिन और समय बदल दिया । भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई। 23 मार्च की तारीख तभी से इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए तीनों ने सांडर्स की कर दी थी हत्या–
महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए शहीद भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु ने अंग्रेज अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या कर दी थी । लाला लाजपत राय की मौत के जिम्मेदार इस अधिकारी की हत्या के बाद यह तीनों क्रांतिकारी चुप नहीं बैठे। उसके बाद अप्रैल 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे। जहां अंग्रेजों की मीटिंग चल रही थी ।
इसके बाद एसेंबली में अफरा-तफरी मच गई । चाहते तो वे आराम से निकल सकते थे लेकिन वे भागे नहीं, बल्कि मजबूती से वहीं खड़े रहे और साथ में पर्चे भी फेंकते रहे । उनका इरादा था कि इससे आजादी को लेकर देशवासियों की जन भावना को भड़काना था । बाद में सभी को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद करीब दो साल उन्हें जेल में रखा गया।
बाद में भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी पर चढ़ते समय भगत सिंह की उम्र 24, राजगुरु की 23 और सुखदेव लगभग 24 साल के थे। इतनी कम उम्र में ही इन क्रांतिकारियों से अंग्रेज हुकूमत घबरा गई थी ।
यहां हम आपको बता दें कि फांसी से पहले भगत सिंह ने जेल में रहतेेे हुए एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने आजादी का मोल समझाते हुए देश के युवाओं से आंदोलन का हिस्सा बनने को कहा था।