बता दें कि चंद महीनों में होने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर किसानों की भाजपा सरकार के प्रति नाराजगी बनी हुई थी. कृषि कानून के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन से अगले साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए चिंता बढ़ गई थी. चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी के लिए किसान आंदोलन एक बड़ी चुनौती बन गया था.
गौरतलब है कि पंजाब में अकाली दल कृषि कानून के चलते ही बीजेपी से गठबंधन तोड़कर अलग हो गई थी. किसान आंदोलन के चेहरा बन चुके राकेश टिकैत खुलकर भारतीय जनता पार्टी को वोट से चोट देने का एलान कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर किसान आंदोलन के चलते पंजाब, उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी के इलाके में बीजेपी का समीकरण गड़बड़ाया नजर आ रहा था.
कृषि कानून के खिलाफ पंजाब से ही किसान आंदोलन शुरू हुआ था, जिसके चलते बीजेपी नेताओं को गांव में एंट्री तक नहीं मिल पा रही थी. पंजाब की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. राज्य में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि कोई भी राजनीतिक दल इन्हें नजरअंदाज कर अपना वजूद कायम रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता है. वहीं कृषि कानून के चलते यूपी में किसान आंदोलन बीजेपी की सत्ता में वापसी की राह में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई थी.
सबसे अधिक पश्चिम उत्तर प्रदेश में कृषि कानून को लेकर भाजपा का विरोध देखा जा रहा था. जाट समुदाय से लेकर गुर्जर, सैनी जैसी तमाम किसान जातियां कृषि कानून की वजह से भाजपा से पूरी तरह दूरी बनाए हुए थे. पीएम मोदी के तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने पर पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा समेत पूरे देश भर के किसानों में खुशी का माहौल है. दिल्ली समेत कई स्थानों पर किसानों ने मिठाई बांटकर जश्न मनाया है और प्रधानमंत्री के इस फैसले का स्वागत किया है.
–शंभू नाथ गौतम