श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय की तीन सदस्यीय विशेषज्ञों की समिति की रिपोर्ट में एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना के लिए सुरंग खोदाई से एक्वीफर (जलभर) में हुए पंचर (छेद) को जोशीमठ में हुए भू-धंसाव का बड़ा कारण माना गया है।
हालांकि समिति का यह भी दावा है कि जोशीमठ की भूगर्भीय संरचना और भार धारण क्षमता से अधिक निर्माण से भी भू-धंसाव की स्थिति पैदा हुई।
समिति ने मौजूदा परिस्थितियों में जोशीमठ की भार क्षमता को कम करने का सुझाव दिया है। विश्वविद्यालय समिति की अध्ययन रिपोर्ट को राज्यपाल, शासन और आपदा प्रबंधन विभाग को सौंपेगा।
बता दे कि सोमवार को समिति के अध्यक्ष प्रो. डीसी गोस्वामी ने अध्ययन रिपोर्ट कुलपति को सौंपी। प्रो. डीसी गोस्वामी ने पत्रकारों को बताया कि जोशीमठ की भूगर्भीय संरचना को देखे तो यह लंबे समय तक ग्लेशियर से ढका रहा।
इसी के साथ ग्लेशियर के मलबे और बड़े-बड़े बोल्डरों से जोशीमठ की सतह का निर्माण हुआ। उन्होंने बताया कि जोशीमठ की सतह और बोल्डरों की ढलान एक ही ओर है।
इसी के साथ बताया कि एनटीपीसी की सुरंग की खोदाई के दौरान एक्वीफर में पंचर हो गया, जिससे गांव तक जाने वाले जलस्त्रोत भी प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि जेपी प्रोजेक्ट के पास 580 लीटर प्रति मिनट से हुआ भूजल रिसाव इसका प्रमाण है।
बता दे कि समिति के सदस्य डॉ. श्रीकृष्ण नौटियाल ने बताया कि जोशीमठ की भार धारण क्षमता के अनुसार 25 मीटर से अधिक ऊंचाई के भवनों का निर्माण नहीं होना था।
जबकि क्षेत्र में सात मंजिला भवनों का निर्माण कर दिया गया। साथ ही उन्होंने कहा कि यह तीनों ही जोशीमठ में भू-धंसाव के कारण हैं। उन्होंने कहा कि जोशीमठ की भार क्षमता को कम करने के लिए भवनों को तोड़ना और फिर से स्थापना ही फिलहाल उपाय है।