उत्‍तराखंड

तीरथ सिंह के फटी जीन्स के बयान के खिलाफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी कूद पड़ी

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मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के फटी जींस वाले बयान पर कांग्रेस खूब जोर-शोर से यह मुद्दा उछालने में लगी हुई है । कांग्रेस पार्टी द्वारा भी लगातार सोशल मीडिया पर तीरथ सिंह रावत के बयान की आलोचना की जा रही है । उत्तराखंड के ‘पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत फेसबुक पर लिखा कि हमारे नए मुख्यमंत्री महिलाओं की फटी जींस पहनने पर या कटी हुई जींस पहनने पर बहुत खफा हैं।

मुख्यमंत्री जी ये नया जमाना है, आपको तो मोदी जी, राम नजर आते हैं, कृष्ण नजर आते हैं और अब आप हमारी बेटियों की जींस पहनने पर भी कमेंट करने लग गए हैं’। वहीं उत्तराखंड के ‘कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि इससे मुख्यमंत्री तीरथ के महिलाओं के प्रति विचार सामने आए हैं। आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश की महिलाओं का अपमान किया है। उन्हें प्रदेश की महिलाओं से माफी मांगनी चाहिए’ ।

कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि भाषा की मर्यादा का पालन सभी को करना चाहिए। मुख्यमंत्री को चाहिए कि बच्चों को संस्कारवान बनाने की शुरुआत वे अपनी पार्टी नेताओं के घरों से करें।
गरिमा दसौनी ने कहा कि मुख्यमंत्री जैसे कद के व्यक्ति को किसी के पहनावे पर ऐसी अभद्र टिप्पणी करना बिल्कुल शोभा नहीं देता।

उन्होंने कहा कि तीरथ सिंह रावत ने एक अमर्यादित और ओछी टिप्पणी की है कि आजकल के बच्चे फटी जींस पहनकर अपने आप को बड़े बाप का बेटा समझते हैं। मुख्यमंत्री होने से आपको यह प्रमाणपत्र नहीं मिल जाता कि आप किसी के व्यक्तिगत पहनावे पर टिप्पणी करें ।

दूसरी ओर अगले साल होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में अपनी सियासी जमीन तलाशने में जुटी आम आदमी पार्टी ने भी तीरथ सिंह रावत के इस बयान को लपकने में देर नहीं लगाई । उत्तराखंड आम आदमी पार्टी ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा, ‘ये देखो बेटियों, यह हैं आपके मुख्यमंत्री जिन्हें आपके कपड़ों पर तंज कसना है, लानत है ऐसे मुख्यमंत्री पर’।

यहां हम आपको बता दें कि भारत के नागरिक को क्या खाना है, क्या पीना है, क्या पहनना है इसकी आजादी संविधान देता है। लेकिन जिस संविधान की कसम खाकर तीरथ सिंह रावत इसी महीने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं । उसके बाद उन्होंने सोचा कुछ संस्कारित बातें कर लिया जाए । इसी को ध्यान में रखते हुए तीरथ रावत जब बाल अधिकार संरक्षण आयोग की कार्यशाला में पहुंचे तो संविधान की जगह अपने हिसाब से संस्कारों की ज्ञान गंगा बहाना बहाने लगे । लेकिन उनका यह उपदेश महंगा पड़ गया है।

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