देश की राजनीति में उठापटक, शह-मात और सियासी चालें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देखी जा सकती है. जनसंख्या-क्षेत्रफल और लोकसभा, विधानसभा की सीटों के लिहाज से देश में कई छोटे प्रदेश भी सियासी हलचलों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं. गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों से राजनीति ने खूब ‘करवट’ बदली है. लेकिन आज हम बात करेंगे शांत और हरी-भरी वादियों के साथ धार्मिक नगरी और अपने विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में जाने वाला उत्तराखंड (देवभूमि) की. इस राज्य के गठन को 21 वर्ष पूरे होने वाले हैं. अगर बात की जाए तो यह साल इस प्रदेश के लिए सियासी दृष्टि से खूब ‘उथल-पुथल’ भरा रहा है. ‘सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने दो मुख्यमंत्रियों को त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत को बदलकर राज्य की शांत सियासत को आक्रामक बनाया, भाजपा हाईकमान के मुख्यमंत्रियों को जल्दी-जल्दी बदलने को लेकर देश भर की सियासत में चर्चा रही’. इसके साथ यह राज्य मुख्यमंत्रियों के पूरे कार्यकाल को न कर पाने के तौर पर भी जाना जाता है.
अब इस कड़ी में राज्यपाल (गवर्नर) भी शामिल हो गए हैं. कभी भी यहां मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों की कुर्सी कार्यकाल (5 साल) पूरा करने के लिए ‘बेचैन’ रही. बात को आगे बढ़ाने से पहले आपको बता दें कि उत्तराखंड में मुख्य दो राजनीतिक दल, भाजपा और कांग्रेस की ही अभी तक सरकारें रहीं हैं. कांग्रेस के एकमात्र मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी 5 साल का कार्यकाल पूरा कर सके थे. इसके अलावा भाजपा और कांग्रेस का कोई नेता अपना शासन पूरा नहीं कर पाया. नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, भुवन चंद्र खंडूड़ी, (खंडूड़ी दो बार मुख्यमंत्री रहे ) रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत कोई भी मुख्यमंत्री के तौर पर 5 साल कुर्सी पर काबिज नहीं रह सके. अब 2 महीने से प्रदेश की कमान पुष्कर सिंह धामी संभाले हुए हैं. मुख्यमंत्री की तरह ही यहां राज्यपाल के कार्यकाल पर भी ‘ग्रहण’ लगा हुआ है.
21 सालों में अब तक उत्तराखंड में तैनात रहे सात राज्यपालों ने नहीं किया पूरा कार्यकाल-
साल 2000 में राज्य के गठन होने के बाद यहां सात राज्यपालों को केंद्र की भाजपा और कांग्रेस शासित सरकारों ने नियुक्त किया. लेकिन कोई भी राजभवन में 5 वर्ष तक नहीं रह पाए. उत्तराखंड के सबसे पहले राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला, 9 नवंबर साल 2000 से 7 जनवरी 2003 तक पद पर रह सके. दूसरे सुदर्शन अग्रवाल 8 जनवरी 2003 से 28 अक्टूबर 2007 तक रहे, तीसरे बनवारी लाल 29 अक्टूबर 2007 से 5 अगस्त 2009 तक अपने पद पर रह पाए. चौथी मार्गेट अल्वा 6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तक रह सकीं. (अल्वा राज्य की पहली महिला गवर्नर थीं). उसके बाद पांचवें राज्यपाल के रूप में अजीज कुरैशी ने 15 मई 2012 से 8 जनवरी 2015 तक राजभवन में रह पाए. उसके बाद छठे कृष्णकांत पॉल 8 जनवरी 2015 से 25 अगस्त 2018 तक इस पद पर रहे. उसके बाद राज्यपाल के रूप में बेबी रानी मौर्य ने 26 अगस्त 2018 को शपथ ली.
मौर्य अपना कार्यकाल 5 साल पूरा नहीं कर सकीं. 8 सितंबर, बुधवार को बेबी रानी मौर्य ने भी करीब 3 साल के अपने कार्यकाल के बाद त्यागपत्र दे दिया. इसी के साथ उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के साथ राज्यपाल की भी एक जैसी गति रही. बता दें कि दलित वर्ग से आने वाली बेबी रानी मौर्य को साल 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका दी जा सकती है. फिलहाल बेबी रानी कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में उत्तराखंड की कमान संभाले हुए हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार