जन्मदिन पर रवींद्रनाथ नाथ टैगोर को भाजपा, टीएमसी ने नहीं किया अपना बनाने का ‘दावा’

आज उस महान दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु, विचारक और विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार का जन्मदिन है जिनको लेकर अभी कुछ दिनों पहले ही बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच जमकर ‘सियासी घमासान’ मचा हुआ था ।

दोनों ही पार्टियों के नेता इन्हें अपना बनाने का ‘दावा’ करते रहे । बात को आगे बढ़ाने से पहले आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, बंकिम चंद्र चटर्जी और ईश्वर चंद्र विद्यासागर आदि विश्व प्रसिद्ध शख्सियतों का भी बंगाल विधानसभा चुनाव में सहारा लिया गया था ।

लेकिन आज हम बात करेंगे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की। आज टैगोर का जन्म दिवस है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बंगाल में प्रचार के दौरान जनता को लुभाने के लिए कई बार रैली के दौरान सार्वजनिक मंचों से ‘गुणगान’ किया गया । दूसरी ओर ममता बनर्जी भी पीछे नहीं रहीं । ‘दीदी ने भाजपा को ललकारते हुए कहा था कि बंगाल की धरती पर जन्म लेने वाले टैगोर भाजपा के कैसे हो सकते हैं’ ? पीएम मोदी पर बंगाल चुनाव के लिए रवींद्र नाथ टैगोर का ‘वेश धारण’ करने पर भी कई बार आरोप लगे । बता दें कि ‘प्रधानमंत्री मोदी ने बंगाल चुनाव होने से पहले ही टैगोर जैसी दाढ़ी बढ़ा ली थी’ ।

(हालांकि अभी भी प्रधानमंत्री ने दाढ़ी कटवाई नहीं है) लेकिन अब बंगाल के चुनाव खत्म हो चुके हैं और तृणमूल कांग्रेस की सरकार बन चुकी है । दीदी बंगाल की सत्ता पाने के बाद ‘सातवें आसमान’ पर हैं । वहीं ‘पीएम मोदी और अमित शाह बंगाल हाथ से निकल जाने पर रैली में की गई महान पुरुषों को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाओं को फिलहाल याद करना नहीं चाहेंगे’। आज गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के जन्मदिवस पर भाजपा और टीएमसी के नेताओं ने विचारों और उनके आदर्शों को न याद किया न इन्हें अपना बनाने के लिए कोई ‘सियासी शोर’ मचाया ।

बता दें कि बंगाल प्रचार के दौरान मोदी और अमित शाह अपनी अधिकांश चुनावी सभाओं में ‘सोनार बांग्ला’ बनाने का वादा करते रहे ।दरअसल यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की एक कविता से प्रेरित है, जो अब बांग्लादेश का राष्ट्रगीत है- ‘आमार सोनार बांग्ला, आमी तोमाके भालोबाशी (मेरा प्यारा बांग्ला, मुझे तुमसे बहुत प्यार है)। फिर भी भाजपा को बंगाल के महान पुरुषों का गुणगान करना सत्ता के करीब नहीं ला सका ।

पीएम मोदी के टैगोर की वेशभूषा रखने पर ममता बनर्जी ने जताई थी आपत्ति—

बता दें कि पश्चिम बंगाल का सियासी रण जीतने के लिए भाजपा ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था । बंगाली अस्मिता के प्रतीकों में गुरुदेव टैगोर का स्थान सर्वोपरि माना जाता रहा है और ऐसे में प्रधानमंत्री का नया लुक खूब सुर्खियों में रहा ।

पीएम मोदी के लंबे बाल और दाढ़ी की साम्यता गुरुदेव टैगोर से जोड़ने पर टीएमसी नेताओं ने कड़ा विरोध भी किया था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीएम के इस नए लुक पर काफी आपत्ति जताई थी । ‘ममता बंगाल की जनता के सामने कई बार चुनाव रैली के दौरान कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को टैगोर जैसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं’।

ममता और टीएमसी के अन्य नेता भाजपा को बाहरी बताते हुए दावा करते रहे हैं कि बंगाल के लोग इन्हें कभी सत्ता सौंपने के लिए तैयार नहीं होंगे। दूसरी ओर मोदी के गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे लुक रखने पर भाजपा बंगाल में अपनी जीत भी देखने लगी थी । आइए अब गुरुदेव टैगोर के बारे में भी जान लेते हैं। अपने सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ।

बचपन से ही उन्हें परिवार में साहित्यिक माहौल मिला, इसी वजह से उनकी रुचि भी साहित्य में ही रही। महज 8 साल की उम्र में टैगोर ने अपनी पहली कविता लिखी थी। 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई। परिवार ने उन्हें कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा। इसलिए पढ़ाई पूरी किए बिना ही वे वापस लौट आए। इंग्लैंड से बंगाल लौटने के बाद उनका विवाह मृणालिनी देवी से हुआ। गुरुदेव का मानना था कि अध्ययन के लिए प्रकृति का सानिध्य ही सबसे बेहतर है। उनकी यही सोच 1901 में उन्हें शांति निकेतन ले आई।

यहां उन्होंने खुले वातावरण में पेड़ों के नीचे शिक्षा देनी शुरू की। टैगोर को उनकी रचना ‘गीतांजलि’ के लिए साल 1913 नोबेल मिला। गीतांजलि बांग्ला भाषा में लिखी गई थी। टैगोर संभवत: दुनिया के इकलौते ऐसे शख्स हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ टैगोर की ही रचनाएं हैं। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवनकाल में 2200 से भी ज्यादा गीतों की रचना की। 7 अगस्त 1941 को गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का कोलकाता में निधन हो गया।

आज भी पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में उनके बनाए गए शांति निकेतन में देश-विदेश से हर वर्ष हजारों लोग अध्यात्म और उनके विचारों से प्रेरित होकर देखने आते हैं ।

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