काठमांडू|…. नेपाल के दोती जिले में बुधवार तड़के 6.3 तीव्रता के भूकंप की चपेट में आए एक घर के ढह जाने से कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई. बुधवार की रात करीब 2 बजे भूकंप के तेज झटके दिल्ली और आसपास के इलाकों में भी महसूस किए गए.
नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक भूकंप की गहराई जमीन से 10 किमी नीचे थी. नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (एनसीएस) ने नेपाल की सीमा से लगे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से 90 किमी. दक्षिण पूर्व में भूकंप का केंद्र बताया है. बुधवार को नेपाल में 24 घंटे के भीतर दूसरा भूकंप आया है.
नेपाल भूकंप में हताहत हुए लोगों की पहचान अभी पता नहीं चल पाई है. अधिकारियों ने बताया कि मरने वालों में कम से कम 1 महिला और दो बच्चे शामिल हैं. दोती की मुख्य जिला अधिकारी कल्पना श्रेष्ठ ने एएनआई को बताया कि जिले भर में कई जगहों पर भूस्खलन से दर्जनों घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं. नेपाल की सेना को भूकंप प्रभावित इलाकों में तलाशी और बचाव अभियान के लिए भेजा गया है.
एनसीएस ने यह भी बताया कि मंगलवार सुबह भी देश में 4.5 तीव्रता का भूकंप आया था. एनसीएस के आंकड़ों के अनुसार पिछला भूकंप काठमांडू से 155 किमी. उत्तर पूर्व में 100 किमी. की गहराई पर आया था. इससे पहले 19 अक्टूबर को काठमांडू में 5.1 तीव्रता का भूकंप आया था. राष्ट्रीय भूकंप निगरानी और अनुसंधान केंद्र (एनईएमआरसी) के अनुसार 31 जुलाई को काठमांडू से 147 किमी.
दूर खोतांग जिले के मार्टिम बिरता के आसपास 6.0 तीव्रता का भूकंप आया था. इससे पहले 2015 में मध्य नेपाल में अपनी राजधानी काठमांडू और पोखरा शहर के बीच रिक्टर पैमाने पर 7.8 तीव्रता का एक उच्च तीव्रता वाला भूकंप आया था. अनुमान है कि इसमें 8,964 लोग मारे गए थे और 22,000 लोग घायल हुए थे.
इस भूकंप को गोरखा भूकंप के रूप में जाना जाता है. उसने भी उत्तर भारत के कई शहरों को हिलाकर रख दिया था. लाहौर, पाकिस्तान, तिब्बत के ल्हासा और बांग्लादेश के ढाका में भी इसके झटके महसूस किए गए थे. नेपाल में हाल ही में आए भूकंपों ने जान-माल की अभूतपूर्व क्षति की है और ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए सुनियोजित नीतिगत उपायों को जरूरी बना दिया है. 1934 में नेपाल को सबसे खराब भूकंप का सामना करना पड़ा था.
इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 8.0 थी. इसने काठमांडू, भक्तपुर और पाटन शहरों को तबाह कर दिया था. यह बताया गया है कि भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे 5 सेमी. प्रति वर्ष की दर से घुस रही है. यह हिमालय के युवा पहाड़ों के निर्माण और बढ़ती ऊंचाई के लिए जिम्मेदार है. ये इस क्षेत्र में भूकंप का खतरा भी बढ़ाती है. अगर बचाव की जरूरी तैयारी नहीं है तो भूकंप जैसी आपदाएं कहर बरपा सकती हैं.