उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थित मृग विहार में वन्यजीवों के साथ ही अब लुप्तप्राय वनस्पतियों का भी संरक्षण किया जा रहा है। बता दे कि इसके लिए वन विभाग ने नर्सरी तैयार की है, जिसमें डायनासोर काल के वृक्षों के साथ ही घास व फूल को भी शामिल किया गया है। पर्यटन के साथ ही शोध के क्षेत्र में वन विभाग की यह पहल जिले के साथ ही प्रदेश को नई दिशा दे सकती है।
हालांकि मृग विहार में यूं तो सैलानियों के आकर्षण के लिए गुलदार, घुरड़, हिरण, सफेद बंदर समेत अन्य जानवर हैं। लेकिन अब यहां वन्य जीवों के साथ ही लुप्तप्राय वनस्पतियों को भी देख सकेंगे।
बता दे कि वन क्षेत्राधिकारी आशुतोष जोशी के अनुसार इनमें सबसे खास डायनासोर काल की जिंको बाइलोबा (रजत फल) है। चीन मूल के इस पौधे के पत्ते, जड़ और छाल में आयुर्वेदिक गुण हैं। इसमें मुख्य रूप से मल्टीविटामिन और मिनरल्स की समृद्ध मात्रा पाई जाती है, जो शरीर को जरूरी पोषण प्रदान करता है।
इसके अलावा, इसमें एंटीडिप्रेसेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-प्लेटलेट जैसे तत्व भी होते हैं। यही कारण है कि यह हृदय रोग, स्थमा, चक्कर, थकान, ग्लूकोमा, रक्तचाप, अवसाद के इलाज में उपयोगी साबित होता है।
ऐसे ही लिवरवाटस, मास, गिंको, फर्न, साइकस, पाइन और आर्किड की प्रजातियों को भी शामिल किया गया है। फर्न और गिंको शुरुआती डायनासोर काल के प्रमुख पौधे माने जाते हैं।
वनस्पति विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं के बीच राई घास बेहद उपयोगी साबित होगी। असल में आग से पर्वतीय क्षेत्रों में वनों के साथ घास भी जल जाती है, वहीं मैदानी हिस्सों में भी गर्मी के दिनों में घास की कमी होती है। ऐसे में राइ घास सर्दी के साथ ही गर्मी में भी हरीभरी रहेगी।