गुजरात में गोधरा कांड के दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप केस में दोषी सभी 11 सजायाफ्ता कैदियों को स्वतंत्रता दिवस पर रिहा कर दिया गया. गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन कैदियों को रिहा करने की अनुमति दी थी. सोमवार, 15 अगस्त को राधेश्याम शाह, जसवंत चतुरभाई नाई, केशुभाई वदानिया, बकाभाई वदानिया, राजीभाई सोनी, रमेशभाई चौहान, शैलेशभाई भट्ट, बिपिन चंद्र जोशी, गोविंदभाई नाई, मितेश भट्ट और प्रदीप मोढिया को गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया.
गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने को बताया कि जेल में “14 साल पूरे होने” और दूसरे कारकों जैसे “उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह” के कारण सजा में छूट के आवेदन पर विचार किया गया.”
गुजरात में साल 2002 में गोधरा कांड हुआ था. 3 मार्च, 2002 को दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो का गैंगरेप हुआ था और उनकी 3 साल की बच्ची समेत परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. बिलकिस की 3 साल की बच्ची की हत्या उसे पटककर की गई थी. जब वारदात को अंजाम दिया गया था, तब बिलकिस बानो 5 महीने की गर्भवती थी. इस मामले के इन 11 लोगों को साल 2004 में गिरफ्तार किया गया था.
फिर अहमदाबाद में केस का ट्रायल शुरू हुआ. हालांकि, बिलकिस बानो ने आशंका जताई कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा एकत्रित सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में इस केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया था.
मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा.
रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोषियों ने 15 साल से ज्यादा सजा काट ली थी, जिसके बाद राधेश्याम ने सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि उनकी माफी के बारे में फैसला करने वाली ‘उपयुक्त सरकार’ महाराष्ट्र है, न कि गुजरात.
रिपोर्ट के मुताबिक अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), राज कुमार ने बताया कि 11 दोषियों ने कुल 14 साल की सजा काट ली है. कानून के अनुसार, आजीवन कारावास का मतलब न्यूनतम 14 साल की अवधि है, जिसके बाद दोषी छूट के लिए आवेदन कर सकता है. फिर आवेदन पर विचार करना सरकार का निर्णय होता है. उन्होंने बताया कि कैदियों को जेल सलाहकार समिति के साथ-साथ जिला कानूनी अधिकारियों की सिफारिश के बाद छूट दी जाती है.