मांगलिक-धार्मिक और सोने की खरीदारी के लिए अक्षय तृतीया है सबसे शुभ दिन

आज अक्षय तृतीया का पर्व पूरे देश भर में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है । इस दिन सबसे अच्छा शुभ मुहूर्त माना जाता है । देश में कोरोना संकटकाल की वजह से भले ही इस त्योहार की रौनक कम कर दी हो लेकिन लोगों में हर्ष और उल्लास छाया हुआ है। देशवासी एक दूसरे को सोशल मीडिया के माध्यम से अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती की शुभकामनाएं दे रहे हैं ।

वही आज चार धामों में से एक यमुनोत्री के कपाट भी शुभ घड़ी में खोले जाने की परंपरा रही है । आइए जानते हैं अक्षय तृतीया के बारे में । अक्षय तृतीया को अखा तीज भी कहा जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्र अपनी उच्च राशि में होते हैं। इसलिए इस दिन शादी, कारोबार की शुरुआत और गृह प्रवेश करने जैसे- मांगलिक काम बहुत शुभ रहते हैं।

शादी के लिए जिन लोगों के ग्रह-नक्षत्रों का मिलान नहीं होता या मुहूर्त नहीं निकल पाता, उनको इस शुभ तिथि पर दोष नहीं लगता व निर्विघ्न विवाह कर सकते हैं। अक्षय तृतीया के दिन सोना और सोने के आभूषण खरीदना शुभ होता है। परंपरागत रूप से, दिवाली से पहले धनतेरस की तरह अक्षय तृतीया पर, लोग समृद्धि के लिए सोना खरीदते हैं । चूंकि अक्षय का अर्थ शाश्वत होता है, इसलिए लोग अपने जीवन में खुशहाली और समृद्धि लाने के लिए सोना और चांदी खरीदते हैं। लोग कार या महंगे घरेलू इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदने के लिए भी दिन सुरक्षित रखते हैं।

इस दिन विवाह, सगाई आदि करना उत्तम माना जाता है क्योंकि यह दिन अत्यंत शुभ होता है। इस तिथि को भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था, इसलिए भी यह दिन शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया पर, दान या दान कार्य पारंपरिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। लोग वंचितों को खाद्यान्न, कपड़े, गुड़ और अन्य सामान वितरित करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अक्षय तृतीया पर दान कार्य पूरे वर्ष के लिए असीमित सौभाग्य लाता है। पूजा, जप और यज्ञ: शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु, गणेश या गृह देवता को समर्पित प्रार्थनाओं का जाप करने से ‘शाश्वत’ सौभाग्य प्राप्त होता है।

अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती भी मनाई जाती है—-

बता दें कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम की जयंती भी मनाई जाती है । भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हुआ था। यह तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इस तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है जो सनातन धर्म के लोगों के लिए बहुत विशेष होती है। हिंदू धर्म शास्त्रों में यह उल्लेख किया गया है कि भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। न्याय के देवता परशुराम को भगवान शिव ने परशु आशीर्वाद में दिया था

जिसके वजह से उनका नाम परशुराम रखा गया। परशु का अर्थ फरसा होता है। ऐसी मान्यता है कि परशुराम जी की पूजा करने से सभी तरह का भय मिट जाता है तथा इंसान के साहस में वृद्धि होती है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेल दिया। इससे नई भूमि का निर्माण हुआ। इसी कारण कोंकण, गोवा और केरल मे भगवान परशुराम की विशेष पूजा की जाती है।

उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है। परशुराम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कई अस्त्र शस्त्र प्रदान किया। भगवान शिव ने अपना परशु परशुराम को प्रदान किया था। यह अस्त्र परशुराम को बहुत प्रिय था । इस अस्त्र को वे हमेशा अपने साथ रखते थे। इसी कारण इन्हें परशुराम कहा गया।

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