वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध की तो यहां भी उत्तराखंड के जांबाज सबसे आगे खड़े मिले। कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवानों ने देश रखा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।उत्तराखंड को यूं ही वीरों की भूमि नहीं कहा जाता। जब-जब देश की आन-बान पर कोई भी संकट आया, उत्तराखंड के जांबाजों ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया है। यही वजह है कि जब भी सैनिकों की शहादत को याद किया जाता है तो उत्तराखंड के वीरों के अदम्य साहस के किस्से हर जुबां पर होते हैं।
आजादी से से पहले हो या आजादी के बाद हुए युद्ध। देश के लिए शहादत देना उत्तराखंड के शूरवीरों की परंपरा रही है। कारगिल युद्ध में भी उत्तराखंड के वीरों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे।
रक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि युद्ध लड़ने में ही नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति तय करने और रणभूमि में फतह करने में भी उत्तराखंड के वीरों का कोई सानी नहीं है। आजादी के बाद से अब तक डेढ़ हजार से अधिक सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी है। किसी मां ने अपना बेटा खोया तो पत्नी ने पति और कई घर उजड़ गए। फिर भी न देशभक्ति का जज्बा कम हुआ और न ही दुश्मन को उखाड़ फेंकने का साहस। वर्तमान में भी सूबे के हजारों लाल सरहद की निगहबानी के लिए मुस्तैद हैं।