125वीं पुण्यतिथि विशेष: अल्फ्रेड नोबेल के किए गए आविष्कार डायनामाइट ने ला दी थी क्रांति, इन्हीं के नाम से दिया जाता है दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘नोबेल’

आज बात करेंगे एक ऐसे महान वैज्ञानिक की जिनका किया गया आविष्कार आज भी दुनिया के कई देशों के लिए कमाई का सबसे बड़ा जरिया बना हुआ है. यही नहीं इनके नाम पर विश्व का सबसे बड़ा पुरस्कार भी दिया जाता है. हालांकि आखिरी समय में इन्हें अपने ही किए गए आविष्कार को लेकर पछतावा था. हम बात कर रहे हैं महान वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की.

अल्फ्रेड की आज पुण्यतिथि है। 125 साल पहले आज ही के दिन 10 दिसंबर 1896 में डायनामाइट की खोज करने वाले वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल का निधन हुआ था. उनके निधन के पांच साल बाद 10 दिसंबर 1901 में पहली बार नोबेल सम्मान दिए गए थे. आज पुण्यतिथि पर आइए अल्फ्रेड के बारे में जानते हैं. अल्फ्रेड नोबेल का जन्म स्वीडन में 21 अक्टूबर 1833 में हुआ. पिता इमानुएल नोबल के दिवालिया होने के बाद 1842 में नोबल सिर्फ 9 साल की उम्र में अपनी मां आंद्रिएता एहल्सेल के साथ नाना के घर सेंट पीटर्सबर्ग चले गए. यहां उन्होंने रसायन विज्ञान और स्वीडिश, रूसी, अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषाएं सीखीं. अल्फ्रेड नोबेल के नाम आज 355 पेटेंट हैं, लेकिन लोग उन्हें डाइनामाइट की वजह से ज्यादा जानते हैं.

डाइनामाइट के आविष्कार के बाद कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इसका इतना ज्यादा इस्तेमाल होने लगा कि अल्फ्रेड ने 90 जगहों पर डाइनामाइट बनाने की फैक्ट्री खोली. 20 से ज्यादा देशों में ये फैक्ट्रियां थीं. वे लगातार फैक्ट्रियों में घूमते रहते थे. इस वजह से लोग उन्हें ‘यूरोप का सबसे अमीर आवारा’ कहते थे. डायनामाइट के आविष्कार को लेकर इस जुनूनी वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल का दावा था कि यह शांति लाएगा, मेरा डायनामाइट दुनिया में होने वाले हजारों सम्मेलनों से जल्दी शांति ला देगा. नोबेल का यह दावा भले सही न हुआ हो लेकिन डायनामाइट ने माइनिंग के क्षेत्र में जरूर क्रांति ला दी. अपने आखिरी समय में डायनामाइट के आविष्कार को लेकर अल्फ्रेड नोबेल को पश्चाताप भी था.

नोबेल पुरस्कार देने के लिए अल्फ्रेड ने अपनी वसीयत लिखी थी—

बता दें कि डाइनामाइट का गलत इस्तेमाल होता देख अल्फ्रेड को अपने आविष्कार पर दुख हुआ. इसके लिए उन्होंने अपने वसीयत में मानवता को लाभ पहुंचाने वाले लोगों को अपनी संपत्ति में से पुरस्कार देने की इच्छा जताई. 27 नवंबर 1895 को अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी आखिरी वसीयत लिखी थी, जिसे 10 दिसंबर 1896 को इटली के सेनरमो शहर में अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु के बाद को खोला गया .उनके वसीयतनामे के मुताबिक उनकी 9200000 डॉलर की संपत्ति से मिलने वाले ब्याज से मानवता और शांति के लिए अद्वितीय काम करने वालों को पुरस्कृत किया जाएगा. 1900 में नोबेल फाउंडेशन की स्थापना हुई और 10 दिसंबर 1901 में पहली बार नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत हुई. सर्वप्रथम भौतिकी, रसायन शास्त्र, चिकित्सा, साहित्य व शांति के क्षेत्र में पुरस्कार दिए गए.

1969 में पुरस्कारों की श्रेणी में अर्थशास्त्र को भी शामिल कर लिया गया. बता दें कि नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले को तकरीबन साढ़े चार करोड़ की राशि दी जाती है. इसके साथ 23 कैरेट सोने से बना 200 ग्राम का पद और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है. पदक के एक ओर अल्फ्रेड नोबेल की तस्वीर और उनके जन्म व मृत्यु की तारीख लिखी होती है. पदक के दूसरी तरफ यूनानी देवी आइसिस का चित्र, रॉयल एकादमी ऑफ साइंस स्टॉकहोम और पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति के बारे में जानकारी होती है.

–शंभू नाथ गौतम

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