एक नज़र इधर भी

लखनऊ की ये इमारत क्यों कहलाती है ‘मनहूस’? नवाबों ने कराया था निर्माण

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सतखंडा इमारत

लखनऊ| नवाबों का शहर लखनऊ यूं तो अपने अदब के लिए मशहूर है लेकिन इसके अलावा भी यहां कई और चीजें हैं जो खास हैं. लखनऊ की इमारतें भी अपने आप में इतिहास की अलग-अलग झलकियां समेटे हुए हैं. नवाबों की बनाई हुई कई इमारतें ऐसी हैं जिन्हें देखने के लिए न सिर्फ देश बल्कि विदेशों से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. हालांकि, यहां एक ऐसी इमारत भी है जिसे आज तक दर्शकों के लिए कभी खोला नहीं गया है. इस इमारत को लखनऊ की सबसे मनहूस इमारत का दर्जा प्राप्त है.

हम बात कर रहे हैं सतखंडा की. सतखंडा इमारत लखनऊ के हुसैनाबाद में घंटाघर और पिक्चर गैलरी के ठीक बीचोंबीच है. यह इमारत देखने में बेहद आकर्षिक है और कई एकड़ में फैली हुई है. सतखंडा को अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने 1842 में बनवाया था.

बादशाह ने सत्ता 1837 में संभाली थी. उनका सपना था कि लखनऊ में एक ऐसी इमारत बने, जो कि शहर की सबसे ऊंची इमारत हो, ताकि पूरे लखनऊ को निहारा जा सके. यही नहीं, उनका ये ख्वाब भी था कि इस इमारत को दुनिया के आठवें अजूबे का खिताब मिले. इसे इमारत को तेज रफ्तार से बनाने का काम किया जा रहा था, इसी बीच बादशाह का इंतकाल हो गया. इसके बाद इस इमारत को अधूरा ही छोड़ दिया गया और इस पर ताला लटका दिया गया.

नवाब ऐसा मानते थे कि अगर किसी इमारत के निर्माण के वक्त उसे बनाने वाले की मृत्यु हो जाती है तो उसे मनहूस मानकर उसका काम आगे नहीं बढ़ाया जाता है. यही वजह है कि आज तक इस इमारत को किसी ने हाथ नहीं लगाया और न किसी ने सतखंडा को बनाने की सोची.

मशहूर इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि सतखंडा की हिस्ट्री मिस्ट्री दोनों ही दिलचस्प हैं. इसके साथ उन्‍होंने कहा,’कुछ इतिहासकार बताते हैं कि इसे नौखंडा बनना था. ऐसे में अगर इसे नौखंडा और दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बनना था, तो यह इमारत 9 मंजिला होती, तो ऐसे में इसे सतखंडा नाम क्यों दिया गया.’ वहीं, रवि भट्ट कहा, ‘यह बात बहुत से इतिहासकारों ने कही है कि बादशाह की मृत्यु के बाद इसे मनहूस मानकर इसका काम बीच में रोक दिया गया था. इसे किसी ने पूरा नहीं किया. यह चार मंजिला अधूरी इमारत है, लेकिन इसे प्रमाणित करना थोड़ा मुश्किल है.’






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