हिंदू धर्म में कोई भी पूजा पाठ कभी बगैर कलावे के संपन्न नहीं होता. कलावा को रक्षा सूत्र माना जाता है. मान्यता है कि कलावे की सूती डोर में स्वयं भगवान का वास होता है. इसे बांधने से व्यक्ति की तमाम विपत्तियों से रक्षा होती है. इसके अलावा व्यक्ति के अंदर सकारात्मकता आती है और उसके तमाम काम बनने लगते हैं.
लेकिन कलावे को बांधते समय विशेष मंत्रोच्चारण किया जाता है, जिसका सही उच्चारण बहुत जरूरी है. तभी ये प्रभावी होता है. इसके अलावा भी कलावे के कुछ विशेष नियम हैं, जिनके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते. यहां जानिए इसके नियम, महत्व और विशेष मंत्र के बारे में.
शास्त्रों में बताया गया है कि कलावा बांधने की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी. जब भगवान विष्णु ने बामन अवतार में तीन पग धरती नाप ली थी, तो राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे पाताल लोक रहने के लिए दे दिया था. तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे भी उनके साथ पाताल लोक में आकर रहें. विष्णु जी ने प्रसन्न होकर उसकी ये प्रार्थना स्वीकार कर ली.
इसके बाद माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को वहां से वापस लाने के लिए भेष बदलकर पाताल पहुंची और बालि के सामने रोने लगीं कि मेरा कोई भाई नहीं है. इसके बाद बालि ने कहा आज से मैं आपका भाई हूं. इस पर माता लक्ष्मी ने तब राजा बलि को रक्षा सूत्र के तौर पर कलावा बांधा और उसे अपना भाई बना लिया. इसके बाद उपहार के तौर पर भगवान विष्णु को उनसे मांग लिया. तब से इस कलावे को रक्षा सूत्र के तौर पर बांधा जाने लगा.
तीन बार लपेटा जाता है कलावा
नियम के अनुसार कलावा कलाई पर सिर्फ तीन बार लपेटा जाता है. तीन बार लपेटने भर से व्यक्ति को ब्रह्मा, विष्णु और महेश, त्रिदेव की कृपा प्राप्त हो जाती है. त्रिदेव के आशीर्वाद के साथ ही सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती तीनों देवियों का भी आशीर्वाद मिलता है.
इस मंत्र का करें उच्चारण
आपने देखा होगा कि कोई भी पंडित कलावा बांधते समय एक मंत्र जरूर बोलता है. वो मंत्र है- ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः, तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल’. मान्यता है कि इस मंत्र के साथ कलावा बांधने से वो प्रभावी हो जाता है. कलावे को पुरुष और कुंवारी कन्याओं के दाहिने हाथ की कलाई पर और शादीशुदा महिलाओं के बाएं हाथ की कलाई पर बांधना चाहिए. साथ ही कलावा बांधते समय मुट्ठी बंद होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए. महिलाएं अपना सिर किसी दुपट्टे आदि से ढंक सकती हैं.
कितने दिनों में बदलें कलावा
शास्त्रों में बताया गया है कि कलावा को हर अमावस्या पर उतार देना चाहिए और अगले दिन नया बांधना चाहिए. इसके अलावा ग्रहण काल के बाद कलावा बदलना चाहिए क्योंकि सूतक के बाद कलावा अशुद्ध हो जाता है और अपनी शक्ति खो देता है. कलावा उतारने के बाद उसे जल में प्रवाहित करना चाहिए या पीपल के नीचे रख दें. कभी किसी गंदे स्थान पर न फेंकें.
कलावा बांधने का वैज्ञानिक कारण
कलावा बांधने का धार्मिक कारण तो आपने जान लिया लेकिन इसका वैज्ञानिक कारण भी समझना चाहिए. शरीर के ज्यादातर अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं. ऐसे में कलाई पर कलावा बांधने से नसों की क्रिया नियंत्रित बनी रहती है. शरीर में त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का संतुलन बनता है, जिससे तमाम रोगों से बचाव होता है.