जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. सुबह साढ़े दस बजे पांच जजों की संविधान पीठ इस पूरे मामले पर प्रारंभिक कार्यवाही करेगी और दस्तावेज दाखिल करने और रिटन सबमिशन के बारे में प्रक्रियात्मक निर्देश जारी करेगी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सहित जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत संविधान पीठ का हिस्सा होंगे. जम्मू कश्मीर से 370 हटाए जाने को फैसले को पूरी तरह से संविधानिक बताते हुए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था.
केंद्र का कहना है कि 2019 के बाद से उस पूरे क्षेत्र में शांति, प्रगति और संपन्नता का दौर शुरू हुआ है. करीब तीन दशक के उथलपुथल के बाद वहां जीवन समान्य हुआ है. स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और बाकि सार्वजनिक संस्थान पिछले तीन साल से बिना किसी परेशानी के काम कर रहे हैं, कोई हड़ताल नहीं हुई है. पहले लगभग रोज होने वाली हड़ताल, पत्थर फेंकने की घटनाएं और बंद अब इतिहास की बात हो गई हैं.
केंद्र ने अपने हलफनामे में ये भी कहा कि राज्य में लोकतांत्रिक तरीके से किए गए संवैधानिक बदलाव से लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं. इतिहास में पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से पंचायती राज सिस्टम वहां लागू हुआ. नवंबर-दिसंबर 2020 में वहां डिस्ट्रिक्ट डिवेलेपमेंट काउंसिल के चुनाव हुए. आज वहां 34 हजार के करीब चुने हुए नुमाइंदे हैं, जो ग्रामीण और शहरी निकायों में जमीनी लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं. शिक्षा का अधिकार जैसे केंद्रीय कानूनों को वहां लागू किया गया, जिससे अब तक वहां के लोग महरूम थे. आतंकवाद इकोसिस्टम को पूरी तरह से नष्ट किया जा रहा है.
5/6 अगस्त 2019 को उठाए गए कदम का आम लोगों को फायदा मिला, उनकी आय बढ़ी, शांति स्थापना हुई. आजादी के बाद पहली बार वहां के लोगों को भी देश के बाकी इलाकों के बराबर अधिकार मिले. याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुए कहा गया है कि इस कदम से वहां के लोग मुख्यधारा से जुड़े. याचिका को मानने से ना केवल जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लोगों के हितों के खिलाफ होगा, बल्कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को भी नुकसान होगा.