लोकसभा में एक अहम बिल पेश होने वाला है. यह है वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election). सरकार के सूत्रों के अनुसार, इस बिल को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है. सरकार के सूत्रों के अनुसार, इस बिल को चर्चा के लिए JPC के पास भेजा जाएगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, लंबी चर्चा और आम सहमति बनाने के बाद सरकार इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजगी. जेपीसी सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ विस्तार से चर्चा करेगी. वह प्रस्ताव पर सामूहिक सहमति की जरूरत पर चर्चा करेगी.
देश में अभी अलग-अलग राज्यों में चुनाव होते रहे हैं. कानून बनने के बाद देश में एक साथ चुनाव कराए जाने की तैयारी की गई है. हालांकि, सरकार के इस कदम का कांग्रेस और आप जैसी कई इंडिया ब्लॉक के दल विरोध करते आए हैं. विपक्ष का आरोप है कि इससे केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को लाभ मिलेगा. नीतीश कुमार की जेडी(यू) और चिराग पासवान जैसे NDA सहयोगियों ने एक साथ चुनाव कराए जाने को लेकर समर्थन किया है. ‘एक देश, एक चुनाव’ के बार-बार होने वाले चुनावों से जुड़ी लागत और व्यवधानों को कम करने को लेकर अहम सुधार के रूप में देखा जा रहा है.
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर अब तक 32 राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिला है. वहीं 15 दलों ने इसका विरोध किया है. इसके लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की थी. रामनाथ कोविंद ने अक्टूबर में 7 वें लाल बहादुर शास्त्री स्मृति व्याख्यान के वक्त कहा कि विरोध करने वाली 15 पार्टियों में कई ने पहले कभी न कभी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार को समर्थन दिया था.
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कहना है कि इस रिपोर्ट को बनाने में उन्हें 6 महीने का वक्त लगा. करीब तीन माह तो इनविटेशन में लग गया. इसके बाद इंटेरेक्शन की गतिविधि आरंभ हुई. दो माह डे टू डे बेसिस पर इंटेरेक्शन किया गया. रिपोर्ट 18 हजार से अधिक की पन्नों की है. उन्होंने बताया कि इतनी बड़ी रिपोर्ट आजतक भारत सरकार की किसी कमिटी ने जमा नहीं की है. ये रिपोर्ट 21 वाल्यूम्स में तैयार की गई है. इसके लिए पब्लिक से सुझाव भी मांगे गए. करीब 100 से ज्यादा विज्ञापन 16 भाषाओं में दिया गया. करीब 21 हजार लोगों ने इस पर प्रतिक्रिया भी दी. 80 प्रतिशत लोग इसके पक्ष में दिखे. उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर बातचीत के लिए हमने पूर्व चीफ इलेक्शन कमिशनर को भी बुलाया. फिक्की,आईसीसी, बार काउंसिल के प्रतिनिधियो को भी बातचीत के लिए यहां पर बुलाया गया.
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कहना है कि भारत में चुनाव कराने में 5 से साढ़े 5 लाख करोड़ रुपये का खर्च आता है. अगर ये बिल लागू होता है तो एक साथ चुनाव कराने में 50 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा. इससे बड़ी बचत होगी. बचे हुए पैसे को इंडस्ट्रियल ग्रोथ में लगाया जाएगा. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बिल के प्रभावी होने के बाद से देश की जीडीपी करीब एक से डेढ़ प्रतिशत बढ़ने की संभावना है. इस तरह से वन नेशन, वन इलेक्शन देश में बड़ा बदलाव ला सकता है.